अपने गाँव चले
●●●●●●●●●●●●●●●●
बस अब तीखी धूप न मिले
गर्म मिजाज मौसम की
आलपीन न चुभे
आओ आज हम भी
प्यारे न्यारे नौनिहालो
के आँगन में
उनकी रंग बिरंगी कागजी
नावों में
बैठ कर दूर अपने गाँव चलें
नीम पीपल की लजकती शाखों
पर
झूलते झूलों में
छोड़ आए थे जिस बचपन को
फिर एक बार गले से लगाया
जाए।।।।
◆
किरण बरेली।।