🌹 खुशबू 🌹
धुआं होने की खुशबू को इजाज़त क्यूँ दीजिए।
जरा कुछ भीड़ से हटकर चला कीजिए।
तेरी खुशबू की सांसों में है दम बाकी अभी,
जरा खुद पे ऐतबार तो किया कीजिए।
हो जश्न बुलंदियों का हर कहीं ये ज़रूरी नहीं,
है जलने वाले बहुत ज़रा बचकर चला कीजिए।
टूट कर बिखर जाना है नहीं मंज़र तेरा,
अपनी दुआओं के सदकों पे भरोसा तो कीजिए।
है नफरतों से लिपटा यह सौगातो का असबाब,
वक्त बेवक्त न्यौता दावत का यूं न दिया कीजिए।
है पत्थर का बुत एक तराशा तुमने जो,
कभी उस मोड़ पर रूक कर एक नज़र देखा कीजिए।
है महफिल में अपनों की न जाने कितने बेवफा,
जिक्र सबसे मुहब्बत न किया कीजिए।
ये माना कि नहीं आसाँ जिंदगी को मर के जीना,
दिल में रोशन चरागों को हर रोज़ किया कीजिए।
डाॅ.कंचन मखीजा
रोहतक, हरियाणा