गीत- सुनो कान्हा!
✍️डॉ कंचन मखीजा
मेरे अंतर के तुम हो प्राण,
हो मेरे जीवन की पहचान।
मैं तुझ संग नेह लगाऊं..
प्रीत पंकज बन जाऊं ।।
धन दौलत की नहीं चाह,
जग छूटे नहीं परवाह।
कि तुम बिन चैन नहीं है..
मेरे दिन रैन यही है..
तेरी झंकार सुनाऊं..
प्रेम के गीत मैं गांऊ।।
तेरे अधरों पर ये मुस्कान,
छवि सुंदर नैन अभिराम।
तुझे पलकों में छुपा लूं..
तुझे दिल में मैं बसा लूं..
तेरा ही दर्शन पाऊं..
तेरी ही महिमा गाऊं।।
माता पृथ्वी
अभिनंदन है उसकी रज के हर कण को,
दे रही आधार प्रति क्षण हर श्वास को,
प्राण त्याग समर्पण स्नेह शक्ति का अर्णव लिए, चले-अविचल, अनथक, अविराम ।।
अपरिमित वात्सल्य जिस का,
माता पृथ्वीः वह पुण्य धरा, पुत्रोःऽम्,
करूँ मैं.. वन्दन शत् शत्.. बारम्बार तुझे प्रणाम ।।
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✍️डॉ. कंचन मखीजा, रोहतक, हरियाणा, 9991186186 |