माँ शारदे वंदना: आत्म-अभिव्यक्ति
माँ शारदे वंदना
नमन करूं हे शारदे माता,
चन्द्र छवि माँ ज्ञान विधाता।
धवल धारिणी सुर सप्त विराजे,
राग रागिनी के स्वर साधे ।
शरणागत की प्रीति दाता ।
ब्रह्म प्रिया नीरव को प्राण दे,
आकिंचन को मान ध्यान दे।
साधन साध्य की तू प्रदाता।
उर अंतर संताप मिटा दे,
बाधा हर ले पथ दरशा दे।
कर्म कृति की शुद्धि दाता।
शरणागत पर कर एक दृष्टि,
पाणि वीणा तू ही समष्टि ।
अनुपम वेद की जीवन दाता।
आत्म-अभिव्यक्ति
क्या करना यह जान मुझे,
कि कोई क्या करता है?
मनोबोध के संकल्पों से ही-
भाग्य का रंग बदलता है।।
जैसा जिसने कर्म किया है,
नियति ने फल उसे दिया है।
अंतर्मन को जब मैं समझूँ-
मार्ग प्रशस्त वही करता है।
घड़ी में हँसना घड़ी में रोना,
मिलना बिछड़ना किसी का खोना।
सब है उसके खेल निराले-
सुख दु:ख का पहिया चलता है।।
गहरा सागर गहरा अम्बर,
गहरी दृष्टि गहरी सृष्टि।
कभी है तृष्णा कभी है तृप्ति-
आनंद योग से मिलता है।।
अज्ञानी करता न सेवा,
अभिमानी को भाता बस मेवा।
दंश दम्भ का लगा पुण्य को-
वज़न पाप का तुलता है।।
भीष्म बंधे प्रतिज्ञा से,
द्रोण बंध गए विद्या से।
विवश कर्ण हुए मित्रता से-
प्रियजनों से अर्जुन लड़ता है।।
प्रीत सौम्य रस गंगा है,
बहे करुणा तो मन चंगा है।
साधन साध्य जब करे समर्पण-
पाप-कर्म सब धुलता है।।