रंगोत्सव (होली) पर्व निर्णय
✍️डॉ० नर्वदेश्वर मिश्र "नीर"
(प्रवक्ता / ज्योतिषाचार्य, साहित्याचार्य, शिक्षाचार्य)
रंगोत्सव (होली) पर्व पर किसी तरह की भ्रान्ति नहीं है। काशी से अन्यत्र सम्पूर्ण देश में चैल कृष्ण प्रतिपदा (उदय कालीन) को मनाया जाता है तथा होलिका दहन सम्पूर्ण देश में रात्रिकालीन पूर्णिमा में किया जाता है। निर्णय सिन्धु के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगोत्सव मनाना चाहिए' -
" चैत्र कृष्ण प्रतिपदि वसन्तोत्सवः साचोदयिकी ग्राह्या"।
"प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपद्युदिते खौ - (भविष्योक्ते -) वत्सरादौ वसंतादौ वलिराज्ये तथैव च। पूर्व विद्धव कर्तव्या प्रतिपत्सर्वदा बुधैः।। वृद्धवसिष्ठ क्वन -) होलिका
अतः सम्पूर्ण देश में 15 मार्च को ही होली मनानी चाहिए। 13 मार्च रात्रि में 'भद्रा समाप्ति के बाद (10:37 बजे) दहन करें। तथा 14 मार्च को काशी में होली खेलें तथा अन्यत्र 15 मार्च को होली मनावें। इस दिन चांडाल से स्वयं स्पर्श करके जो मनुष्य स्नान करता है उसको पाप और व्याधि स्पर्श नहीं करते। इस प्रकार चैत्रमास कृष्ण प्रतिपदा के दिन सूर्योदय पश्चात आवश्यक नित्यकर्म करके होलिका को प्रणाम कर समस्त दुःखों से शन्ति के लिए होलिका भष्म को धारण कर होली पर्व प्रारम्भ करें।
सप्रमाण प्रस्तुत
होलिका दहन - 13 मार्च को रात्रि में
काशी में होली 14 मार्च को
सम्पूर्ण देश में 15 मार्च को