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भिखारी ठाकुर |
भिखारी ठाकुर: क्षेत्रीय भाषाई कला के धनी व्यक्तित्व!
✍️सत्येन्द्र कुमार शर्मा (वरीय पत्रकार)
विश्व में मानव की अवधारणा , विचारधारा चाहे जो भी हो या यों कहें कि विश्व साहित्य में अपनी भाषा के माध्यम से अपना परिचय पा लेना भी बहुत बड़ी बात हो जाती हैं। राहुल सांकृत्यायन ने भिखारी ठाकुर के संबंध में कहा था कि
'"हमनी के बोली में केतना जोर हवे, केतना तेज बा, ई अपने सब भिखारी ठाकुर के नाटक में देखींले। लोग के काहे नीमन लागेला भिखारी ठाकुर के नाटक में काहे दस-दस, पनरह-पनरह हजार के भीड़ होला ई नाटक देखे के खातिर। ई मालूम होता कि एही नाटक में पब्लिक के रस आवेला। जवन चीज में रस आवे, उहे कविताई। केहू के लमहर नाक होखे आ ऊ खाली दोसे सूँघत फिरे त ओकरा खातिर का कहल जाय! हम ई ना कहतानी जे भिखारी ठाकुर के नाटकन में दोस नइखे। दोस बा त ओकर कारन भिखारी ठाकुर नइखन, ओकर कारन हवे पढुवा लोग। भिखारी ठाकुर हमनी के एगो अनगढ़ हीरा हवे। उनकरा में कुल्हि गुन बा।'"
जनपदीय साहित्य धारा और राज साहित्य-धारा एक के पास साधनों का अभाव तो दूसरी धारा के पास साधनों का पहाड़ सा खड़ा दिखाई पड़ने लगता है।
एक साहित्य धारा,जो राजनीति और प्रशासन की गणेश-परिक्रमा कर रही थी। सर्वत्र चकाचौंध दिखाई पड़ रहा था। वहीं दूसरी साहित्य धारा जो जनपदों की आवाज थी मगर महानगरों को सुनायी नहीं दे रही थी।
यदि आप मैथिलीशरण गुप्त को पढ़े तो अच्छी बात है किंतु नाथूराम शंकर को नहीं पढ़े भिखारी ठाकुर और ईसुरी को नहीं पढ़े, लखमी चंद को नहीं पढ़े, यह अच्छी बात नहीं हुई। लोकतांत्रिक युग है और लोक को पाठ्यक्रम से बाहर ही बैठा दिया गया हो लोक जीवन, लोक भाषा और लोक साहित्य पर क्या क्या पढ़ा और क्या क्या पढ़ाया जाएगा अभी तय होना शेष है।
भिखारी ठाकुर कालिजाई कवि एक प्रसिद्ध भोजपुरी कवि और लेखक थे, जिन्होंने 19 वीं शताब्दी में भोजपुरी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
एक संक्षिप्त जीवन परिचय
भिखारी ठाकुर का जन्म 1817 में बिहार के सारण जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास ठाकुर था, जो एक प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। भिखारी ठाकुर ने अपनी शिक्षा सारण जिले में प्राप्त की और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
उनका साहित्यिक कार्य
भिखारी ठाकुर कालिजाई कवि ने अपने जीवन काल में कई प्रसिद्ध कविताएं और उपन्यास लिखे। उनकी लिखे कविताओं में प्रेम, प्रकृति, और सामाजिक मुद्दों पर ही केंद्रित रही है।
उनके कुछ प्रसिद्ध रचनाएं
- "कालिजाई" (कविता संग्रह)
- "बिदेसिया" (उपन्यास)
- "गंगा स्नान" (उपन्यास)
- "भिखारी ठाकुर की कविताएं" (कविता संग्रह)
साहित्यिक शैली
भिखारी ठाकुर कालिजाई कवि की साहित्यिक शैली में पारंपरिक भोजपुरी कविता के तत्वों का पूर्ण समावेश था। उनकी कविताओं की भाषा सरल और स्पष्ट थी, जिससे वे आम लोगों के लिए भी समझने योग्य थीं।
प्रभाव और विरासत
भिखारी ठाकुर कालिजाई कवि का प्रभाव भोजपुरी साहित्य पर बहुत अधिक था। उनकी कविताओं ने भोजपुरी साहित्य में एक नए युग की शुरुआत की, जिसमें प्रेम, प्रकृति, और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित कविताएं लिखी गईं। उनकी विरासत आज भी भोजपुरी साहित्य में जीवित है, और उनकी कविताएं आज भी पढ़ी और सराही जाती हैं जो उन्हें अमरत्व भी प्रदान करता है।