किसान हित और ज्यादती के विरुद्ध उतरे किसान नेता, 7 को करेंगे दिल्ली की ओर कूच!
नई दिल्ली: भारतीय हलधर किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरेन्द्र सोलंकी के साथ उत्तर प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण गोपाल सिंह भदौरिया, राष्ट्रीय मुख्य महासचिव देशराज राज भगत सिंह के कुशल नेतृत्व में 7 दिसंबर को सुबह 11 बजे दिन में भारतीय हलधर किसान यूनियन संवैधानिक मानदंडों, गांधीवादी व शांतिपूर्ण तरीके से आगरा, एटा, फिरोजाबाद, अलिगढ़, मेरठ, खुर्जा, बुलंदशहर और गौतमबुद्ध नगर की टीम के साथ सैकड़ों गाड़ियों और हजारों हजार किसानों के साथ किसान हित और ज्यादती के विरुद्ध गांधीवादी तरीके से दिल्ली की ओर कूच करेंगे।
इसकी जानकारी देते हुए राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता शैलेश कुमार गिरि ने कहा कि अंग्रेज़ों के 84 तरह के टैक्स के विरुद्ध सबसे लम्बा किसान आंदोलन लगभग 123 साल पहले हुई थी। श्री गिरि ने माननीय प्रधानमंत्री जी से सवाल करते हुए स्पष्टीकरण भी जानना चाहा है कि अब के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जब 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उस समय केंद्रीय समिति बनी थी और श्री नरेन्द्र मोदी उस केंद्रीय समिति के अध्यक्ष थे और तब उन्होंने लिखित रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से स्वयं कहा था कि किसानों को एम एस पी की गारंटी लिखित रूप में मिलनी चाहिए, लेकिन मजे और जुमले बाजी की हद तो तब हुई जब ये सरकार में आते ही अपने ही बातों से पलटी मारी है। इसलिए किसान देवताओं का विश्वास माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी से उठता रहा है।
इस पर माननीय प्रधानमंत्री जी किसानों के बीच अपना विश्वास पुनः कैसे बहाल करेंगे। शैलेश कुमार गिरि भारतीय हलधर किसान यूनियन के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता ने आगे कहा कि वर्तमान में चल रहे आंदोलन की मांगें ये है :
1. अधिग्रहित ज़मीन का 10% हिस्सा किसानों को विकसित करके देना
2. 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उचित मुआवज़ा देना
3. नए भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक, बाज़ार दर का चार गुना मुआवज़ा देना
4. भूमिधर और भूमिहीन किसानों के बच्चों को रोज़गार और पुनर्विकास के लाभ देना
5. आबादी क्षेत्र का उचित निस्तारण करना
6. सभी फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी आश्वासन हासिल करना
7. सभी किसानों के लिए ऋण की पूरी माफ़ी
इन मांगों के अलावे भारतीय हलधर किसान यूनियन के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता सह बिहार झारखंड प्रदेश प्रभारी शैलेश कुमार गिरि का कहना है कि जिस देश की आत्मा और रीढ़ की हड्डी 70 प्रतिशत किसान ही हो जो विषम से विषम परिस्थितियों में भी देश की जीडीपी में अहम् रोल अदा करते हुए सबसे उपर रहता है, उसी किसान के लिए कृषि प्रधान देश भारत में किसान आयोग का न बनना दुर्भाग्यपूर्ण है। अतः एक किसान आयोग और बने हुए किसान आयोग में किसान यूनियन के पदाधिकारी ही सभी पदों पर रहे तभी देश का भला हो सकता है। साथ ही मैं माननीय प्रधानमंत्री जी एवं केन्द्रीय कृषि मंत्री से बिहार व झारखंड में बढ़ते औद्योगिकीकरण के पूर्व हो रहे भूमि सर्वेक्षण की कठिन जटिलताओं और झारखंड में फ़सल बीमा योजना में करोड़ों की हुए गबन की और ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहना चाहता हूं कि भविष्य में बिहार झारखंड भी किसान आंदोलन की धरती बनने से इंकार नहीं किया जा सकता। अंत में मैं यही कहूंगा कि किसान आंदोलन कमजोर नहीं हो सकता।