बाल दिवस पर बाल मन बालपन पहाड़ों जंगलों की जगह स्मार्टफोन पर!
मानव जीवन की शुरुआत त्रेतायुग में हुई या द्वापरयुग में हुई कहना बड़ा मुश्किल सा लगता है। लेकिन उसके पहले कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान भोलेनाथ एवं देव मंडली की भी चर्चा अध्यात्मिक पुस्तकों के रचयिता ने उल्लेख किया है। इसके अलावा आज के नेटवर्क पर भी वह सब कुछ देखने सुनने व पढ़ने को अक्सर मिल जाया करता है। कालान्तर में देवी-देवताओं ऋषियों-मनीषीयों के युग की चर्चा रचनाकारों ने की है लेकिन उनके बालपन और बाल मन पर विशद वर्णन नहीं मिलता है।
आदिम युग और आदिम मानव जीवन की भी चर्चा हुई हैं। 1990 के दशकों में एकाएक मानव पीढ़ी में काफी बदलाव आया है। जब आधुनिक युग में कम्प्यूटर का आगमन होता है। कम्प्यूटर के 1990 से 2010 के बीच मानव जीवन में पदार्पण करते ही मानव जीवन में बदलाव आया हैं खासकर बच्चों में व्यापक बदलाव आया है।
बालपन व बचपन में ही आधुनिकता का नया संयोजन हुआ। और इस अवधि के बच्चों के हाथ में आधुनिक तंत्र का मोबाइल, सीडी, विडियो, दुरदर्शन सर्व सुलभ पाया जाने लगा। और यहां से बालपन का बाल मन रियल से ज्यादा वर्चुअल दुनिया में अपनी इमेज की चिंता करते देखा जाने लगा। हिन्दी रचनाकारों की कलम भी आज की आधुनिकता में अपने आप को समावेश कर दिया। लोग ऑनलाइन ब्रांडिंग पर समय लगाने स्क्रीन को सच मानने को उतारु होते चले गए है।
मानव जिस तरह से इवॉल्व होकर यहां तक पहुंचा है, मौजूदा पीढ़ी इससे अपने आप को अलग ढ़ंग से प्रस्तुत कर रहा है। मानव आज दुरसंचार के विभिन्न माध्यमों से अपनों से दूर होता जा रहा हैं तो दूसरी ओर करीब भी होना कहने में कोई संकोच नहीं है। आधुनिक दुरसंचार आज हमारे जीवन पर हद से ज्यादा कब्जा कर लिया है।
तकनीक जानकारों के अनुसार आज भारत के लगभग 120 करोड़ लोगों तक आधुनिक दुरसंचार ने टेलिकॉम सब्सक्राइबर बना दिये हैं, हालांकि इंटरनेट सब्सक्राइबरों की संख्या 95.4 करोड़ बताई जा रही है। आधुनिक डिजिटली ने जीवन के सभी क्षेत्रों में काफी जागरूकता फैला दी है। आज तो स्मार्टफोन के वगैर मानव जीवन दूभर सा लगने लगा है।
लेकिन एक बार फिर हम देवी -देवताओं, ऋषियों के युग में अथवा द्वापरयुग और त्रेतायुग में चलें तो हमारे अध्यात्म में भी वह शक्ति दर्शाया गया है जो आज के आधुनिक तंत्र वहां पहुंचने में कामयाब हो रहें हैं।लेकिन राम, कृष्ण,परशुराम, द्रोणाचार्य, बशिष्ठ, विश्वामित्र द्वारा अर्जित ज्ञान में भी सब-कुछ दर्शाया गया है। लेकिन वहां आशक्ति आज की तरह नहीं है।लेकिन आज के बच्चों के हाथ में यदि स्मार्टफोन है तो दूनिया उनकी मुठ्ठी में है। उन्हें राम कृष्ण परशुराम द्रोणाचार्य वगैरह की तरह तपोबल की जरूरत नहीं है। आज के बाल दिवस के बालपन में बाल मन स्मार्टफोन पर है जो कभी जंगलों में पहाड़ों पर था।