जीवन का फंडा: तारे जमीं पर! सफर का आनंद लें, यही वास्तविक जीना है!
/// जगत दर्शन न्यूज
अचानक एक दिन यात्रा के दौरान रात्रि समय में बहुत से तारे जमीं पर नजर आए। लेकिन काफी देर देखने पर यह पहेली नही सुलझी कि यह इतने सारे तारे इतने नीचे कैसे हो सकते हैं और वो भी शहर के प्रदूषित वातावरण में? क्यों की तारे तो अक्सर अंधेरी रात में और खुले साफ आकाश में ही इतने सारे एक साथ नजर आते हैं और यह दृश्य अक्सर ग्रामीण इलाकों में ही दिखता है। शहर में तो इसकी संभावना नगण्य होती है।
सोचते सोचते गाड़ी को धीमा कर उस रोमांचित करने वाले दृश्य को नजदीक से देखा तो जानकारी मिली कि यह तारे सोलर एनर्जी से जलने वाली छोटी छोटी सी लाइट है और बिजली की बड़ी लाइनों को दूर से ही देखा जा सके इसके लिए इनका साइन बोर्ड की तरह इस्तेमाल किया जा ता है। दुर्घटना से बचाव और रोमांचित करने वाला यह नजारा आप तभी देख सकते हैं। जब आप सफर के बीच आने वाले विभिन्न दृश्यों का पूर्ण आनंद ले रहे हो और आप मन, बुद्धि से स्थिर हो कर सफर में एक निर्धारित गति सीमा से सफर कर रहे हों और मंजिल पर पहुंचने की जल्द बाजी या अन्य बाधाओं से दूर हो कर सफर कर रहे हो।
सफर चाहे की मंजिल पाने का हो या जीवन जीने का हो दोनों एक समान ही है दोनों में ही सुख प्राप्ति तभी संभव है जब आप उस यात्रा के हर पड़ाव का आनंद ले रहे हो। अक्सर जब हम किसी भी प्रकार की यात्रा पर निकलते हैं तो हमारी स्पीड और टाइम दोनों ही गड़बड़ होती है, क्योंकि हम धैर्य से बहुत दूर रहते हैं और उसकी वजह से रास्ते के मनोरम दृश्य, व्यक्ति, वस्तु, ज्ञान वर्धक तथ्यों, आकस्मिक घटनाओं को नही देख पाते हैं और ना ही महसूस करते हैं। अक्सर पूरी यात्रा, नींद लेने में, मोबाइल देखने, दूरी के साइन बोर्ड या घड़ी देखने में ही निकल जाती है और पूरा सफर बोरियत भरा, थका देने वाला महसूस होता है।
इसी प्रकार हमारे जीवन का सफर भी है जो हमेशा आगे से आगे नई नई मंजिल, नए लक्ष्य, नई उपलब्धियों यानी टारगेट पर निर्धारित कर लेते हैं। एक टारगेट पूरा होते ही दूसरा तय कर लिया जाता है और अंत हीन ,आनंद हीन दौड़ में दौड़ते रहते हैं
और जीवन तेज़ी से निकल कर कब उस पड़ाव पर पहुंच जाता है कि वहां पहुंच कर पता चलता है कि खुद के लिए तो जिया ही नही और जो जिया वो भी आनंद और सुख से तो परे था। साथ ही विभिन्न प्रकार के ज्ञान से भी बहुत दूर था।
सारा जीवन लक्ष्य पूर्ति वो भी सिर्फ भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति में ही लगा दिया बीच बीच में आने वाले विभिन्न पड़ावों, खुशियों, आराम के पलों, मनोरम दृश्य और आनंद प्राप्ति के श्रोत को तो समझ ही नही पाए और सारा सफर दौड़ते हुए, घड़ी देखते हुए, भौतिकता को समर्पित करते हुए ही बीता दिया। आज यदि सच्चा सुख, आनंद, वास्तविक ज्ञान और आत्मिक संतोष प्राप्त करना है तो सफर को सफर की तरह ही करना होगा। सफर चाहे जीवन का हो या किसी स्थान की यात्रा का, उसे उत्सुकता, उत्साह और धैर्य के साथ कीजिए!
""खुद में खुद के साथ ,खुद के लिए""
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक।।।