एक अमित नाम: मुन्शी प्रेमचंद
प्रेमचंद जयंती पर विशेष
✍️किरण बरेली
बरसो बरस बीत चले, लेकिन ये कलम का जादूगर कलम का सच्चा सिपाही आज भी पाठको की नजर में अपनी अमिट छाप बनाए हुए हैं। उन्होने ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण बखूबी उकेरा। कहानी सुभागी का जिक्र भला कौन भूल सकता है?
बेटे के लिए लिखा है पुत्र को समझा था रत्न। पुत्री को पूर्व जन्मो के पापो का कठोर दन्ड। समय करवट बदलता है, सुभागी उनकी बेटी होनहार नायिका के रूप में खरी उतरती है। बेटा कठोर दन्ड साबित होता है।
कथा सम्राट उनकी लिखी किताबों के पन्ने पन्ने हकीकत से वाकिफ कराते हैं। ईदगाह कहानी का हामिद जो मेले से तीन पैसो से चिमटा खरीद लाता है। बूढ़ी दादी अमिना की तकलीफों का असर बालक के मन में गहरे तक समाया है। महान कथाकार ने प्रत्येक कथा कहानी को अमर बना दिया।
कथा सम्राट मुन्शी प्रेम चंद जिन्होंने अपनी लेखन विधा में किसी भाषा को दीवार नहीं बनाया। पहले पहल वे मीठी जुब़ान उर्दू में लिखा करते थे। इंसान व इंसानियत को उन्होने जाति व धर्म में नहीं बाँटा।
हमें उनकी कहानियों में ऐसे ही आदर्श की झलक दिखाई देती है। यथार्थ का चित्रण बखूबी किया। अपने विचार हकीकत की कठोर भूमि पर रखा। ग्रामीण परिवेश को आँखों में यूँ उतारते कि पाठक पढ़ते वक्त खुद को गाँव की सरज़मीन पर पाते।
गरीबी अभाव की सत्य कड़वाहट को उनकी कलम की जादूगरी ने बखूबी उकेरा। आपकी अमर कथाएं कफन, ईदगाह, हार की जीत, सुभागी, गरीब की हाय
आदि अनेक कहानियां है, जो यादों में छप जाती हैं। आपकी लेखनी को कोटी। कोटी प्रणाम नमन है।।