हुनरमंद लाड़ली
किरण के मुक्तक!
1
नृत्यांगना बेटी के आलताई पाँवों पर
माँ बाँध रही है नुपूर।
सुनो मेरी हुनरमंद लाड़ली,
जब तुम नाचोगी,
तो नाच उठेगी यह सृष्टि।
तुम्हारे नृत्य के लय पर,
संगीत भी थिरक उठेगा।।
2
वंदनीय धरा का अभिनंदन
पावन मिटटी चंदन जैसी,
खेतों की सुफल फसलों को
तुम संबल दिए जाती हो।।
पाँव दलदल में दबाए,
हाथों से हरियाली सजाए,
हरी रंगोली से नवसृष्टि सजाए,
घान की इक बाली को,
असंख्य बनाए जाती हो।।
3
तुम मनमोहिनी मूरत ना सही,
नज़ाकत तुम्हारी फितरत न सही,
अटल अडिग खड़ी पत्थरों की तरह,
चटख धूप ओढ़ा घूँघट की तरह।।
धरती माँ के गर्भ में अमृत बहता है,
श्रम के खारे- खारे जल से ही,
सावन में उपजती फसलो को नमन है,
यह खेत खलिहान देश के महकते चमन हैं।