इजहार, अपने और पराए और समर्थ!
प्रेम नारी से शुरू तो नारी से खत्म!
✍️संजय जैन "बीना"
इजहार
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दिल की पीड़ा को नारी 
भली भाती जानती है। 
आँखों को आँखों से
पढ़ना भी जानती है। 
इसलिए तो मोहब्बत 
नारी से शुरू होकर। 
नारी पर आकर ही
समाप्त होती है।। 
मोहब्बत होती ही है
कुछ इसी तरह की।
जो रात की तन्हाई 
और सुहाने मौसम में। 
बहुत बैचैन कर देती है
और दिलको गुदगुदाति है। 
जो मेहबूब से मिलने की
प्यास बढ़ती है।। 
कागज पर लिखकर ही 
तो मोहब्बत जुबा होती है। 
दिल की बातों को 
कागज पर लिखती है। 
और अपने मेहबूब को 
प्रेम-पत्र भेज देती है। 
और अपनी मोहब्बत का
इजहार खत से करते है।।
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अपने और पराए
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जो कल तक दोस्त थे 
अब वो दुश्मन बन गये हैं। 
जो खाते थे कसमें यारों
सदा साथ निभानें की। 
जरा सा वक्त क्या बदला 
की बदल गये ये सब। 
और छोड़कर साथ मेरा
चले गये कही और।। 
जो अपने स्वर्थ को तुम
रखोगे जब साथ अपने। 
तो कोई भी निष्ठावान
नहीं पूरा करने देगा। 
और तेरे चेहरे को भी
नही पसंद करेगा। 
और तेरे से दूरी भी
सदा बनाये रखेगा।।
समय ही अपने और
दोस्तों की परख कराता है। 
और वर्षो के रिश्तों का 
एहसास करता है। 
जो साथ दे बुरे वक्त में 
वो ही अपने कहलाते है। 
और जो साथ छोड़ जाये
वो अपने होकर भी पराये है।। 
जिंदगी की सच्चाई को
समझना जरूरी है। 
सम्मान देना और लेना
स्वयं पर निर्भर है। 
किसे साथ रखे और 
किसे दूर करें। 
और जिंदगी के लम्हों को
तुम स्वयं ही जीओं।। 
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समर्थ
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जिंदगी का अब कोई भरोसा नही। 
कब आ जाये बुला हमें पता नही। 
इसलिए हँसते खेलते जी रहा हूँ। 
और जाने की प्रतिक्षा कर रहा हूँ।। 
जो लोग लक्ष्य के लिए जीते है। 
उनकी जिंदगी जिंदा दिल होती है।
और जो लोग हकीकत से भागते है। 
जिंदगी उनकी नरक बनी रहती है।। 
दुनियां में सबको जिंदा रहना है। 
और कुछ भी उन्हें नही करना है।
पर सबके बीच में उन्हें बैठना है। 
और सिर्फ जुमले बाजी करना है।। 
जमाना बीत गया अब चौपालों का। 
जहाँ हर प्रकार की बातें होती थी। 
और अपने समर्थ के बल पर। 
गाँव और परिवार बंधे रहते थे।। 
टूट गया आज गाँव पर आसमान। 
जब बना बनाया संसार उजड़ गया। 
क्योंकि बांधने वाले का जाना हो गया। 
इसलिए गाँव हमारा अब बिखर गया।। 
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