डोली में दूल्हा दुल्हन देख बच्चे हैरान! वर्षो पुरानी परंपरा हुई जीवंत!
सारण (बिहार) संवाददाता वीरेश सिंह: दशकों पूर्व शादी समारोहों में दूल्हा दुल्हन को बिठाकर लाई ले जाने वाली शाही सवारी के रूप में प्रचलित रही लकड़ी के आवरण से बनी डोली वर्तमान दौर में लगभग विलुप्त सी हो गई है। दूल्हा दुल्हन को डोली में बिठाकर तथा उन्हें कन्धे पर उठाकर मिलों तक ले जाने वाले मजबूत शरीर वाले कहाँर भी अब कहीं नही दिखते।
शुक्रवार की रात माँझी प्रखंड के जई छपरा गाँव में सीमावर्ती बलिया जनपद के दूबहड़ से आई बारात में डोली पर सवार होकर पहुँचे दूल्हे राजा को देखने के लिए आसपास के लोगों खासकर महिला व बच्चों की भीड़ उमड़ पड़ी। शादी समारोह में मौजूद लोग कौतूहल वश दूल्हे से ज्यादा लकड़ी से बनी डोली तथा उसे कन्धे पर उठाकर ढोने वाले कहाँर को निहार रहे थे। शनिवार की सुबह दुबहड़ से चलकर सरयु नदी के रास्ते नाव पर सवार होकर ब्याह रचाने पहुँचे दूल्हा मनोहर चौधरी के साथ बिहारी चौधरी की पुत्री बसंती कुमारी पारम्परिक रस्म के साथ विदा हुई। डोली पर बैठ कर परम्परागत तरीके से विदा होते दूल्हा दुल्हन तथा अश्रुपूरित नेत्रों से अपनी लाडली को विदा करते परिजनों को देखकर लोगों को वर्षों पुरानी प्रचलित रीति रिवाज की याद ताजा हो गई। वर्तमान दौर में लग्जरी गाड़ियों में हंसते मुस्कुराते तथा टाटा बॉय बॉय करते दूल्हा दुल्हन की होने वाली अत्याधुनिक विदाई की चल रही परिपाटी के बीच नई पीढ़ी के लिए अजीबो गरीब सवारी डोली का लुत्फ उठाते दूल्हा दुल्हन का अंदाज देख कर लोगों में कौतूहल सा दृश्य उत्पन्न हो गया। बाद में दूल्हा दुल्हन की डोली समेत बारात नाव से बलिया जनपद के लिए खुशी खुशी रवाना हो गई।