कैसे उकेरु तेरा रुप पिता
✍️ रति चौबे (न्यूजीलैंड)
/// जगत दर्शन साहित्य
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पितृ दिवस पे लौट आई यादें-
मन की पीर उमढ़ फिर आई-
अखियां मेरी भर-भर के आई-
 रोक नहीं अपने भावों को पाई
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तेजस्वान तेरा था रुप अनोखा-
बौध्दिकता से था वो परिपूर्ण -
 आकर्षण से था वो भरा हुआ-
 मुख -मंडल था सौम्य-गंभीर-
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 जीवन-लक्ष्य बताया मुझको-
  मार्गदर्शक,गुरुकुल,मित्र थे -
   मुझे गढ़ने वाले कुम्हार थे
  कल्पवृक्ष,जीवनदाता,भी थे-
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वे ही  कवच सरंक्षक, ढाल थे-
प्यार की थपकी,अपरिभाषी-थे
पिता नहीं मरते,जीवित हें सदा
विकल नयन ढूंढते उन्हें ही सदा
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