बेटी घर की जन्नत है
और मनंत मांगते बेटों की।
अंतर माँ बाप ही करते
फिर कैसे जन्मेंगी बेटी।।
घर परिवार चलाने को
बेटी का होना जरूरी है।
वंश का वारिस के लिए भी
नारी का होना जरूरी है।
जब बेटी नहीं जन्मोगे तुम
तो बेटा कहाँ से लाओगें।
अपनी अर्थी और शरीर को
किस से तुम जलवाओगें।
इसलिए दुनियाँ को चलाने
बेटी को तुम दो जन्म।।
बेटी घर की जन्नत है
और मनंत मांगते बेटों की।।
संसारिक रीति रिवाज सिर्फ
चलते है कुल दीपक से।
पर घर के हर अनुष्ठानों में
बेटी को आगे करते हो।
कभी लक्ष्मी कभी सीता
कभी दुर्गा उसे कहते हो।
पर बेटे से ये सारे तुम
काम क्यों नहीं करवाते हो।
जबकि बेटी ही जन्ती है
सब के कुल दीपक को।।
बेटी घर की जन्नत है
और मनंत मांगते बेटों की।।
बुरा वक्त जब आता है तो
बेटी समाने आती है।
बोझ उठाने माँ बाप का
सीना ठोकर कहती है।
बेटा तब नजरें चुराकर
घर से भाग जाते है।
और अपने सुख की खातिर वो
माँ बाप को छोड़ देते हैं।
इसलिए कहता हूँ यारों
बेटी घर की शान है।।
बेटी घर की जन्नत है
और मनंत मांगते बेटों की।