मौत ती सस्ती हुई पर मंहगी रोटी है!
मौत तो सस्ती हुई पर मंहगी रोटी है,
जिंदगी पटरी पर अभी कहाँ लौटी है।
दर बदर खा ठोकर नसीब रोटी नहीं,
दो टूक रोटी मे भी किस्मत खोटी है।
रात दिन चलकर करीब मंजिल नहीं,
चलते रहिए दूर अभी ऊँची चोटी है।
भूख मे अब और नहीं कटती गुजार,
जीने को बहुत कुछ पर उम्र छोटी है।
रोज ही रोजगार में निकलते कदम,
तंबदन पंजर सा बची बाकी बोटी है।
हारकर थम गया उस रोज मनसीरत,
काम आई ही नहीं फैकी जो गोटी है।
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जिंदगी छोटी बहुत, घटती हर दिन रोज है
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जिंदगी छोटी बहुत,घटती हर दिन रोज है,
खुशियों हों लाजिमी,होती रहती खोज है।
प्यार का हो आसरा,हमसाया भी पास हो,
रहमतें मिलती रहें,हर पल हरदम मौज है।
गर्दिशों में है अड़ी , नौका जीवन की यहाँ,
बंदिशे भी है बड़ी भारी भरकम बौझ है।
जब तलक जिंदा रहे,कोई भी ना पूछता,
बाद मरने के यहाँ,हर दिन होता भोज है।
आज् को जीते रहो,मनसीरत इस जहां,
हाल होता है सदा,जैसी जिसकी सोच है।
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✍️सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)