चालीस साल बाद विवाह वर्षगांठ पर एक पत्नि की आरजू.....
✍️रति चौबे
/// जगत दर्शन साहित्य
सुनो,चलो ना
४० साल पहले
लौट चलें यूँ..
तुम निहारों
अपलक वैसे ही
मै आत्ममुग्धा.
घुटन भरे
कत्तँव्यों,बोझ तले
चक्रव्यूह से..
दूर बहुत
जहाँ हम तुम हो
तीसरा नहीं...
भटके हम
बरसों बीत गए
आवरण में..
संवेदनाएं
विव्हल मन लिए
गुमराह से..
अपरिचित
अनजान बटोही
मन मार के..
हम बावरे
भागे जीवन भर
मृगतृष्णा में
आकुल से
व्याकुल ह्दय लिये
ऊहापोह में
समय बीता
़ थकान पे थकान
.. शिथिलता भी..
क्या हुआ प्रिय...?
काया ही क्षीण हुई
केश श्वेत है...
उम्र अभी है
प्रतिपल नेह है
.प्रगाढ़ता दो..
यही तो वक्त
दिवस उमर के
महकाओ न..
यही समय
जीवन का निचोढ़
जी भर भीगें..
मंथन करें
.आत्मविश्लेषण हो
.चितंन करें...
तुम ह्दय
मै धड़कन रहूँ
चलो ना प्रिय...
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