ओ अकेला!
/// जगत दर्शन साहित्य
ओ मतवाला सा है,
अलबेला सा है,
जहां के भीड़ में अकेला सा है।
धैर्य है साहस है,हां और किसी की चाहत है।
है चाहत होती कहां सब की पूरी,
बिन इसके तो ज़िंदगी तलफ है।
जी चाहता है उसके ज़ात का
हिस्सा हो जाऊं,
रूबरू हूं उसके ख्वाबों से,
पर अज्म बिखर जाता है,
मख़लुक के बुत से।
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