रमजान के महीने में रोजा क्यों?
वेद और विज्ञान में क्या है रोजा?
![]() |
✍🏻 मौलाना वसी अहमद गौसी |
रोज़ा क्या है?
रोज़ा एक इबादत है, जो कि रमज़ान (हिजरी कैलन्डर का महीना) महीने में 1 माह के लिए रखे जाते है। रोज़े को अरबी भाषा में ‘‘सौम’’ कहते हैं। इसका अर्थ ‘‘रुकने और चुप रहने’’ के हैं। क़ुरआन में इसे ‘‘सब्र’’ भी कहा गया है, जिसका अर्थ है ‘स्वयं पर नियंत्रण’ और स्थिरता व जमाव (Stability)।
रोज़ा क्यो रखा जाता है?
इस्लाम में रोज़े का मतलब होता है केवल अल्लाह (ईश्वर) के लिए और उसके हुक़्म से भोर से लेकर सूरज डूबने तक खाने-पीने, सभी बुराइयों से स्वयं को रोके रखना। "अनिवार्य रोज़े" जो केवल रमज़ान के महीने में रखे जाते हैं और यह हर व्यस्क मुसलमान के लिए अनिवार्य हैं।
रोज़े का 1 मकसद ये भी है कि भूख-प्यास की तकलीफ़ का अहसास हो ताकि वह भूखों की भूख और प्यासों की प्यास में उनका हम दर्द बन सकें।
क्या रोज़े अन्य धर्म में भी है..?
क़ुरआन जो कि आखरी ईश्वरीय ग्रन्थ है, में साफ़ तौर से लिखा है कि जैसे तुम से पहले के लोगों पर अनिवार्य किये गए थे... अब हम देखते है,
वेद:- सनातन धर्म में रोज़े को व्रत या उपवास कहते हैं। व्रत का आदेश करते हुए वेद कहते हैं ‘‘व्रत के संकल्प से वह पवित्रता को प्राप्त होता है। पवित्रता से दीक्षा को प्राप्त होता है, दीक्षा से श्रद्धा को और श्रद्धा से सद्ज्ञान को प्राप्त होता है।‘‘ (यजुर्वेद, 19:30)
रोज़ा और विज्ञान...
सन् 1994 में मोरक्को में ‘रमज़ान व सेहत’ पर पहली अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस) हुई जिसमें पूरी दुनिया से आये पचास रिसर्च पेपर पढ़े गये। सभी में एक बात उभरकर आयी कि रोजे से किसी भी तरह का सेहत को कोई नुक़सान नहीं होता। जबकि बहुत से हालात में रोज़ा पूरी तरह फायदेमन्द साबित होता है।
इस तरह हम देखते है, रोज़ा/उपवास केवल मुस्लिम समाज के लिए ही नहीं अपितु संसार के हर मनुष्य के लिये लाभदायक है, जो कि धार्मिक आधार पर ही नहीं अपितु वैज्ञानिक आधार पर भी हर मनुष्य के लिए लाभदायक है।