///जगत दर्शन न्यूज
सारण (बिहार) संवाददाता मनोज सिंह: प्राकृतिक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ाने के उद्देश्य से माँझी कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रशिक्षण कक्ष में प्राकृतिक खेती विषय पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शनिवार को शुरू हुआ।
प्राकृतिक खेती आवश्यक है, क्यों?
प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपने सम्बोधन में कृषि विज्ञान केन्द्र, मॉझी के उद्यान विशेषज्ञ डॉ0 जितेन्द्र चन्द्र चन्दोला ने कहा कि इस समय प्राकृतिक खेती बहुत बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान समय में उर्वरकों व एग्रो-केमिकल्स की कीमतों में काफी इजाफा हुआ है, साथ-साथ समय पर इसकी आपूर्ति की भी समस्या बनी हुई है। ऐसे में किसानों को इनका विकल्प ढूंढना अति आवश्यक है जो की हमारी प्रकृति में मौजूद है। किसान अपने खेतों में सूक्ष्म जीवों एवं केंचुआ इत्यादि को सक्रिय कर कृषि लागत को कम कर सकते हैं।
प्राकृतिक खेती लाभदायक है, कैसे?
किसान अपने खेतों में सूक्ष्म जीवों एवं केंचुआ इत्यादि को सक्रिय कर कृषि लागत को कम कर सकते हैं। ये फसल के पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में बहुत ही मददगार होते हैं। सूक्ष्म जीवों व केंचुआ के सहयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि लगातार भूमि पर रासायनिक कीटनाशकों अथवा खादों का प्रयोग तथा भूमि को प्रतिवर्ष पलटने से भूमि की उर्वरा शक्ति पूरी तरह समाप्त हो चली है। हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ कृषि की लागत भी बढ़ रही है। रासायनिक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता में और मनुष्यों के स्वास्थ्य में भी गिरावट आई है। किसानों के पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो उन्हें प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा क्षमता काफी कम हो गई है, जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए प्राकृतिक खेती जरूरी हो गया है।
कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञ डॉ सौरभ शंकर पटेल जी ने प्राकृतिक खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों, डॉक्टर कन्हैया लाल रेगर ने प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य में सुधार,डॉ रातुल मोनी राम ने प्राकृतिक खेती से कीट एवं रोगों के प्रबंधन एवं कार्यक्रम सहायक डॉ0 विजय कुमार द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती के चार स्तंभ एवं सिद्धांत,जीवामृत घनजीवामृत,बीजामृत एवं नीमास्त्र इत्यादि बनाने की विधि एवं विभिन्न फसलों में उपयोग की विस्तृत में जानकारी भी दी गई। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जिले में प्राकृतिक खेती की अधिक संभावना है। इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र, मांझी में प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके तहत प्रशिक्षण प्राप्त करने आये किसानों को प्राकृतिक खेती की महत्ता, आवश्यकता एवं लाभ पर विस्तृत जानकारी दी जा रही है।कार्यक्रम में 40 महिला एवं पुरुष किसान प्रशिक्षण ले रहे हैं।