प्रेम की प्रतिमूर्ति प्रेम शर्मा जी को दी गयी श्रद्धांजलि!
✍️ मंजु बंसल रमा (बैंगलोर)
दिव्यालय साहित्य यात्रा की वरिष्ठ, मधुर व प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी प्रेम शर्मा जी का अचानक देवलोकगमन का समाचार समूचे पटल पर उपस्थित गुरुजनों व साधकों को स्तब्ध व निःशब्द कर गया ।कुछ पलों के लिये पटल सूना हो गया ।प्रेम शर्मा जी को श्रद्धांजलि देने हेतु पटल पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया जिसमें सभी ने प्रेम दीदी के प्रति अपने उद्गारों व खट्टी-मीठी यादों को जीवंत किया। बहुमुखी प्रतिभा की धनी, कोमलता, विनम्रता व मासूमियत के गुण उनमें प्रत्यक्ष द्रष्टव्य थे। पटल अध्यक्ष मंजिरी निधि गुल तो शब्दहीन व बहुत ही भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि अपनेपन का अहसास कैसे करवाना है, कोई प्रेम दीदी से सीखे। उन्होंने सही मायनों में जीवन को जीया है। हर पल नव उर्जा से संचारित, सकारात्मक दृष्टिकोण, असाध्य रोग से जूझते हुये भी अदम्य साहस का प्रतीक थीं। समाज-सेवा, दीनों के प्रति स्नेह व मदद को हर पल तत्पर रहती थीं।
पटल संस्थापक व्यंजना आनंद मिथ्या ने कहा कि प्रेम दीदी की अमिट छाप दिलोदिमाग़ पर हर पल बनी रहेगी ।दिव्यालय के प्रत्येक आभासी कार्यक्रम में सदैव उनकी उपस्थिति रहती थी। कलकत्ता में दिव्यालय का कार्यक्रम करवाने की उनकी इच्छा अधूरी ही रह गई। गुरु के प्रति समर्पण की प्रबल भावना उनके हृदय में थी। यू. के. से किशोर जैन ने कहा कि ये तो विधि का विधान है जिसे हम टाल नहीं सकते। इस कड़वी सच्चाई को हमें स्वीकार करना ही पड़ता है। इस असहनीय व दुखदाई घड़ी में पूरा पटल उनके परिवार को यह दुख सहने की क्षमता प्राप्त करने की प्रार्थना करता है।
तत्पश्चात् प्रेम शर्मा जी के पति राजकुमार शर्मा जी बहुत ही भावुक नज़र आये ।उन्होंने कहा कि यही जीवन का अंत है जहाँ हम कुछ नहीं कर सकते पर कुछ अविस्मरणीय क्षण हर पल मन को झकझोरते रहते हैं। वे बहुत ऊर्जावान, व दयालु हृदय की स्वामिनी थीं। असाध्य रोग होते हुये भी प्रतिदिन छह से आठ घंटे तक लेखन कार्य करके ही उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती थी।
पटल गुरु एवं साधक, अनुराधा पारे, पद्माक्षी शुक्ल, रश्मि मोयदे, कविता झा काव्या, सविता खण्डेलवाल भानु, रीता लोधा, उषा अग्रवाल, सुचिता रूंगटा साई, मनीषा अग्रवाल प्रज्ञा, मंजु बंसल रमा, नीलम अग्रवाल, सविता वर्मा उषा, कविता पगारे, सुजाता देवी एवं रोशनी सकसरिया ने विनयपूर्वक उनके साथ बिताये पलों व उनकी छोटी-छोटी बातों का स्मरण करते हुये उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
अंत में व्यंजना आनंद मिथ्या ने कहा कि उनके अंतस में किसी तरह की दुर्भावना समाहित नहीं थी।सदाचार, आचरण का सबक़ उनसे जीवन से हमें ग्रहण करना चाहिए। मानव को मिथ्या अहंकार नहीं करना चाहिये। अपने सदव्यवहार व शुद्ध आचरण से हम पहचाने जाते हैं ।ये सारे गुण प्रेम दीदी में समाहित थे। अतः हमें उनका अनुसरण कर जीवन-पथ पर अग्रसर होना चाहिये।
प्रेम दीदी का रचित दोहा—-
चलते-चलते थम गया, मंज़िल लगती दूर।
संघर्षों से जूझते, नहीं कभी मजबूर॥
दिव्यालय परिवार इन्हीं शब्दों के साथ प्रेम शर्मा दीदी को शत-शत नमन व अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।