लिव इन रिलेशन पर रचित एक बहुत अच्छी रचना!
✍️रति चौबे
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 प्रिय तेरे कहने पे
कर तो दूं अपने को  तुझे समर्पित 
 हो जाऊं "मैं"सदा को तेरी
    जग में रहूं मैं निंदित,
     छोड़ूं घर,रिश्ते-नातें
बिन फेरे हो जाऊं भी 'तेरी'
           निभा लोगे -?
जब जीवन-सत्य जानोगे!
   बंधन क्या होता है ?
बंधन में स्थिरता है भारी 
बंधन में केवल प्यार नहीं
बंधन में कर्तव्य भी है भारी
    तो निभा पावोगे ?
अधिकार चाहूंगी यदि तुमपे
दे पावोगे तुम पति- अधिकार
सम्मान चाहूंगी तो दे पावोगे ?
      मेरा प्यार 'दफन' ना हो-
आतुर सी रहूं ढूंढती तुमको
विश्वास-डोर ना टूटे हमारी
तूं हो जाए कभी ,कहीं विलीन
      प्रेम-सरिता जो उमड़ रही है -
हो ना जाए कहीं विलुप्त-
     सुखद-छुवन सी यादें तेरी
फंसी भंवर में"मैं" रहूं ढूंढती
         और एक दिन 
स्वर हमारे जाए यूं ही थम ?
धड़कनें भी हो जाए" दोगली"
आरोप-प्रत्यारोपण का हो दौर
        लगे प्यार में "दीमक"
मेरा डर मुझे करदे घायल
"आत्महत्या"को होऊं बेबस
संतान हमारी रहे लावारिस
मैं टूंटू ऐसी,फिर जुड़ ना पाऊं
        दुनियां इतनी विशाल!
   हम-तुम हो जावे "तन्हा"
      नेह-वीणा के टूटे तार
तुम"तुम"ना रहो,मै"मै" ना रहूं
             क्योंकि -
पति-पत्नि का रिश्ता "अटूट"
विवाह नहीं वो "पावन" तीर्थ
    ना-ना नहीं लांघ सकूं
           ये चौखट
    मैं घर- संस्कृतियों
            की दिवारें
                और-
        नहीं बन सकती " मैं"
             बिन फेरे मैं "तेरी"
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✍️ रति चौबे (नागपुर, महाराष्ट्र)
