अन्तिम यात्रा का सच!
घोर कुहासा से यहाँ, बिछा तिमिर घनघोर।
दूर दूर तक ना दीखे, कहीं मानव का शोर।।
उसी राह के हे पथिक, हो तुम साधन हीन।
धरती के सम्राट की, हालत है अति दीन।।
धन दौलत छूटा वहाँ, नहीं समाजी साथ।
कर्मों पर अफसोस कर, पछताये धर माथ।।
पुण्य कर्म किन्हीं नहीं, नहीं किन्हीं सहयोग।
ऐसे में कैसे बने, तेरे मदद का योग।।
बैतरणी अभी दूर है, छाले पड़ गए पाँव।
पैदल ही जाना तुझे, निज प्रियतम के गाँव।।
अब पछताये क्या बने, कहता मन सकुचाय।
नेह नियम सत् भाव से, करम करो सब भाय।।
काम न आता है कोई, साथ नहीं कुछ जाय।
हे तन धारी नर सुनो, बातें कान लगाय।।
सुनो बिजेंदर सत्य हीं, आता है पथ काम।
पुण्य कर्म करना सदा, लेई हरि का नाम।।
नेक कर्म करते जो प्राणी, धरे हरि का ध्यान।
ईश्वर के दरबार में, बनता वहीं महान।।
अधम कर्म करते जो मानव, अधमगति को पाय।
जग में नाम हँसाई के, अधम लोक को जाय।।
दुर्लभ मानुष जनम है, जो तुने है पाय।
माया में लपटाई के, काहे व्यर्थ गँवाय।।
तन माटी का पूतला, साँसें मिली उधार।
प्यारे नैतिक कर्म बिन, सब कुछ है बेकार।।
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
पता: गैरतपुर, माँझी, सारण, बिहार
संपर्क सूत्र: 7250299200