दिव्यालय एक व्यक्तित्व परिचय में मनाया गया कीर्तिशेष विमल राजस्थानी जी का 102 वाॅं जन्मोत्सव! उनके शब्दों और भावों को व्यक्त करती उनकी पोती व्यंजना आनंद "मिथ्या" होस्ट किशोर जैन के साथ!
अतिथि- व्यंजना आनंद " मिथ्या "
होस्ट- किशोर जैन
रिपोर्ट- सुनीता सिंह " सरोवर "
-Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.
"जिन सकरुण गीतों में कवि निज दुख रोते हैं।
वे ही गीत अमृत से भी मीठे होते हैं।।
अपने विचारों और भावों को जो सहज ही कविता में पिरो देते थे और चित्र को सजीव बनाने की क्षमता रखते हम आज उनके व्यक्तित्व से रुबरू होंगे। जैसा की सभी जानते है कल याने 9 नवंबर को धनतेरस है । धनतेरस दिव्यालय के लिए खास पर्व भी है क्योंकि दिव्यालय की संस्थापिका व्यंजना आनन्द के पितामह का यह दिवस वर्ष गाठ का दिवस है। और आज हम दिव्यालय के पूरे साघकों की ओर से सुप्रसिद्ध कविवर श्री विमल राजस्थानी जी के चरणों में श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर ने जा रहें हैं जिसके लिए कविवर की पोती व्यंजना आनन्द मिथ्या आज हमारे बीच कविवर के व्यक्तित्व परिचय के लिए हमारे बीच में उपस्थित हैं ।
तो चलिए और देर किए बिना हम उनके पास चलते हैं।
धन तेरस को जन्म लिए थे।
विमल रूप था उनका प्यारा।।
अपने शब्दों के जादू से,
किये जगत को अपना सारा।
आद्र नयन मेरे होते हैं,
याद आपकी जब-जब आती।।
पद चिन्हों पर जब चलते हम,
तभी लेखनी धन्य हो पाती।।
मन को छू लेने वाली इन पंक्तियों दिव्यालय संस्थापिका व्यंजना "मिथ्या " जी ने अपने दादा श्री को उनके 102 वे जन्मोत्सव के समय भावुक होते हुए कहा। व्यंजना आनंद "मिथ्या" यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं आप एक सफल योग प्रशिक्षित होने के साथ - साथ उच्च कोटि की साहित्यकार हैं, दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा नामक पटल मुख्यतः महिलाओं के लिए हैं, जहाँ हर एक महिला को पूर्ण विकास करने का मौका दिया जाता हैं, जो किसी कारण वश अपने सपनो को पंख नहीं दे पाई वो आज यहाँ से अपने सपने पूरे करते हुए, एक पहचान बना रही हैं और मान सम्मान अर्जित कर रहीं हैं।
धनतेरस का विशेष श्रृंखला कवि श्री विमल राजस्थानी जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जहाँ उनके जीवन पर प्रकाश डालते व्यंजना जी जो उनकी पोती हैं और बहुत ही सफल गुणी लिस्टर और रेडियो प्रेजेंटर श्री किशोर जैन जी जो यू. के .के साथ एक विचार गोष्ठी के दौरान कवि श्री विमल राजस्थानी जी के जीवन से संबंधित बातें सामने आई जो मन को छू लेने वाली थी।
कवि श्री विमल राजस्थानी की ये पंक्तिया.…
तुम इसे बाढ़ का नाम न दो!
लख सुलग रही भारत मा की यह शस्य श्यामला गोद हरी
'यमुना' के दृग भीगे-भीगे 'गंगा' की आँखें' भरी-भरी
हो जाते सप्त-सिंधु रीते जब बूँद-बूँद कर नीर झरे
तब इन अनगिनत आँसुओं से गंगा की गोदी क्यों न भरे।
इन कूल- किनारों की फैली, बाँहों के बंधन तोड़-फोड़,
बन गयी विपथगा दुख-कातर प्रिय सिंधु-मिलन का मोह छोड़।
पाटलीपुत्र में डोल रही 'गौतम- अशोक' की याद लिये,
काशी में 'शिव' की ओर चली रो-रो अपनी फरियाद लिये।
फरियाद कि "पावन रहा सदा- जो मेरे उर का सोता है,
उसमें ही यह पापी मानव- अपनी तलवारें धोता है।
एक छाया वादी कवि की ये पंक्तियाँ मन को झकझोर देती हैं। एक -एक शब्द यथार्थ के ताने -बाने बुनते प्रतीत होते हैं। ऐसी ही एक और घटना का जिक्र करते हुए मिथ्या जी ने बताया कि
क्षमा सोचती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो (राष्ट्र कवि दिनकर जी की रचना पर मोतिहारी (पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय- बाहुधारक) में जब दिनकर जी ने अपनी यह रचना सुनाई तब विमल जी ने तत्काल एक कागज के टुकड़े पर अपना मन रख कर यह सुनाया।
"क्षमा करेगा वो भुजंग क्यों,
जिसका फण छत हो।
क्षमा भी कर देगा वो भुजंग,
जिससे भूलवस कुछ गलत हो।।
मगर जो जानबूझकर, फणधर के फण पर पग धरते हैं। विषमता को झेलते फिर स्वांग मौत मरते हैं।
प्रश्न- कविवर श्री विमल राजस्थानी जी ने अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत कब की थी?
उत्तर- कहते हैं ना कि पूत के पांव पालने में ही दिख जातें हैं। बस यही समझ लिजीए उन्होंने चौथी कक्षा से अपने भावों को शब्द रुपी मोतियों में पिरोना शुरू कर दिया था और छठी कक्षा में खंड काव्य " चितेरा" की रचना भी कर दी जिसमें श्रृंगार रस को हम पाते हैं।
उनकी पहली रचना का एक युग्म --
बाहु पाश में भारत को भर, सिर ऊँचा कर खड़ा हिमालय, हिन्द-मुकुट में विधि ने मानों धवल नवल नग जड़ा हिमालय।।
उनकी अंतिम किताब त्रिपथगा थी, जो आज भी आंग्ल में अनुवादित हो लाईब्रेरी ऑफ अमेरिका में धरोहर के रूप में सुरक्षित है।
सन 1978 में उनकी दुसरी किताब "पारिजात के फूल प्रकाशित हुई जिसके लिए भी लाईब्रेरी ऑफ अमेरिका के डायरेक्टर द्वारा आग्रह कर संग्रहित किया गया, आज उनकी रचनाएँ लाखों युवाओं के ज्ञानार्जन का माध्यम बनी हुई हैं, राजस्थान की भूमि में उनके लेखन और काव्य पाठ के आधार पर उन्हें राजस्थानी पदवी से नवाजा गया, यह कहानी है समकक्ष छायाकार कवि की जो हर युवा के मन को प्रेरित करती है कुछ नया करने के लिए।
प्रश्न- उनकी पकड़ छंद के किन- किन रसो पर था?
उत्तर- वे शारदे के सपूत थे वे छंद के रस में निपूण थे, एक से बढ़कर एक कालजयी रचनाएँ आज जब मैं पढ़ती हूँ तो मन खुश हो जाता है। आज भी उनकी सारी रचनाएँ ललित शब्द कोष में पढ़ा जा सकता है। मूर्तिपूजक न होते हुए भी उनकी सरस्वती वंदना हृदय को छू लेती है।
जय-जयति जय-जय शारदे !
अयि शारदे! मा शारदे !!
मन बीन को झंकार दे
सद्भाव- पारावार दे,
अभिनव स्वरों का ज्वार दे
मा शारदे! मा शारदे !!
पद-पद्म का आधार दे मा!
अमित प्यार-दुलार दे,
रस की अमिय बौछार दे।
मा शारदे! मा शारदे !!
कवि-कल्पना को धार दे
कृति को निखार-सँवार दे
श्री, सिद्धि, जय-जयकार दे
मा शारदे! मा शारदे!!
प्रश्न- आप आनन्द मार्ग से जुड़ी हैं, तो क्या दादा जी भी आनन्द मार्ग का ही अनुसरण करते थे?
उत्तर: जी वो कुछ विशेष अनुभूति प्राप्त कर आनंद मार्ग के अनुयायी हो गये और ताउम्र मंदिर की चौखट पर नहीं चढ़े। हमें तो आनन्दमार्ग सौगात मे जन्म से मिला।
प्रश्न- क्या कारण था कि इतने अच्छे रचनाकार, गीतकार होने के बाद भी वो राष्ट्रीय सम्मान से वंचित रह गए?
उत्तर- वे सदा अपनी मिट्टी से जुड़े रहे, उनमें कभी भी प्रसिद्ध होने की लोलुपता नहीं थी। यहाँ तक कि वे कभी राजधानी तक भी नही गए काव्य पाठ के लिए, बस निस्वार्थ सेवा जन- जन की किए एक गुरु की तरह सबको तराशते रहे। पर सम्मान की कोई कमी न रहीं उनकी एक रचना पाठ पर जमीन राज सरकार द्वारा मिल जाया करती थी। मीना बाजार में सात दूकान और एक बड़ा गैरेज उन्हें पुरस्कार में मिला। रही बात राष्ट्रीय कवि की तो यह सरकारी मुलाजिम को ही प्राप्त हो सकती थी उन दिनों। कवि श्री विमल राजस्थानी जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके शब्द उनकी लेखनी हमें उनके होने का एहसास दिलाती हैं। और सच एक कवि कभी नहीं मरता वो तो अमर होता है, अपनी रचनाओं में।
अंत मे व्यंजना आनंद जी छायावादी कवि श्री को नमन करते हुए किशोर जैन को धन्यवाद दिया इस साक्षात्कार के लिए। यह भी कहा कि जहाँ उनकी वासवदत्ता पर पी एच डी की गयी वहीं शोधकर्ताओं के लिए उनकी रचनाएँ मील का पत्थर साबित होंगी।