विजयादशमी क्यों? क्या हैं मान्यता?
ज़ूम ऐप्प पर!
अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक 'विजयादशमी' का त्योहार भारतवर्ष में शरद् ऋतु का प्रस्तुति पर्व है। यह माॅं भगवती ( माॅं दूर्गा) की उपासना का द्योतक है।
विजयादशमी क्यों?
पौराणिक आख्यानों से ज्ञात होता है कि महिषासुर नामक राक्षस ने शिव की घोर तपस्या के उपरान्त प्राप्त दैवी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं को परेशान करने लगा था और देवतागण अपने मिलित प्रयासों से भी उसका संहार नहीं कर पा रहे थे। देवताओं के द्वारा शिव की प्रचण्ड आराधना के परिणाम स्वरूप दूर्गा शक्ति का आविर्भाव हुआ था, जिसने अपने दश भुजाओं से महिषासुर का वध किया था। इस प्रकार महिषासुर के आतंक से देवताओं की रक्षा की। इसे नवरात्रि का पर्व भी कहते हैं। उसका कारण है कि महिषासुर के वध के दौरान मां दुर्गा अपने नौ रूपों में प्रकट हुई थी जो सभी शक्ति के विभिन्न रूप थे।
क्या हैं मान्यता!
मान्यता है कि अत्यन्त श्रद्धा और निष्ठा के साथ (उपवास व्रत और अन्य अनुष्ठानिक विधि-निषेधों को मानते हुए) करने से सभी प्रकार के दु:ख- कष्ट दूर हो जाता है और जागतिक समृद्धि तथा यश- वैभव की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि आज से तेरह सौ वर्ष पूर्व बंगलादेश के राजशाही जिले के समृद्ध शाली ज़मींदार कंसनारायण राय के द्वारा अत्यन्त ही गौरवशाली तरीके आयोजित किया गया था। देखा देखी अन्य जमीन्दार तथा बाद में जन-समूहों ने दुर्गा पूजा का त्योहार मनाने लगे जिसमें अकूत धन का व्यय होता जो आज भी जारी है। आज यह त्योहार जन सामान्य हो गया है।
चूंकि दूर्गा पूजा मूल रूप से बाहरी प्रदर्शन पर आधारित है इसलिए इसका किसी भी प्रकार से मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह एक परम्परागत पूजा है जो मनोरथ सिद्धी के लिए की जाती है।
आनन्द मार्ग के अनुसार!
आनन्द मार्ग के प्रवर्त्तक तारक ब्रह्म महाकौल श्री श्री आनन्दमूर्त्ति ने विजयादशमी को मानव मात्र के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकाश के औचित्य को आधार बनाकर आनन्द मार्ग का समाजशास्त्र चर्याचर्य के प्रथम खण्ड में सामाजिक उत्सवानुष्ठान के तहत इसे 'शरदोत्सव' की संज्ञा दी है। साथ ही षष्ठी से लेकर दसवीं तक प्रतिदिन मिलित ईश्वर प्रणिधान, वर्णाघ्यदान, आनन्दानुष्ठान, तत्त्वसभा आदि का आयोजन के उपरान्त प्रत्येक दिन किसी विशेष निमित्त को अनुष्ठानिक रूप में पालन करने की व्यवस्था दी है जिसे आनन्द मार्ग के साधक- साधिकायें मानकर चलते हैं।
उदाहरण स्वरूप (क) षष्ठी (शिशु दिवस) - एक समय मिलित ईश्वर-प्रणिधान और वर्णार्घ्यदान, आनन्दानुष्ठान, शिशु प्रदर्शनी, शिशुक्रीड़ा प्रदर्शनी और बच्चों का मिलित भोज।
(ख) सप्तमी (साधारण दिवस) - शिशुओं को छोड़कर अन्य व्यष्टियों के लिए—एक समय मिलित ईश्वर-प्रणिधान और वर्णार्घ्यदान, आनन्दानुष्ठान, युवक-स्वास्थ्य प्रदर्शनी, वयस्कों की क्रीड़ा और शक्ति प्रदर्शनी ।
(ग) अष्टमी (ललित कला दिवस) - एक समय मिलित ईश्वर- प्रणिधान और वर्णर्घ्यदान, आनन्दानुष्ठान, साहित्य सभा तथा नाना प्रकार की ललित कला प्रदर्शनी ।
(घ) नवमी (संगीत दिवस) - एक समय मिलित ईश्वर-प्रणिधान और वर्णार्घ्यदान, आनन्दानुष्ठान, संगीत, वाद्य संगीत और नृत्य प्रतियोगिता ।
(ङ) दशमी (विजयोत्सव ) - रंगीन वस्त्र पहनकर वाद्ययन्त्रों तथा ताण्डव नृत्य सहित शोभायात्रा, मिलित ईश्वर- प्रणिधान और वर्णार्घ्यदान, प्रणाम, आलिंगन इत्यादि तथा अपने अपने निवास स्थान पर अतिथियों तथा अभ्यागतों का सत्कार ।
इस प्रकार आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के साधकों द्वारा'शरदोत्सव' (विजयादशमी/ नवरात्रि) का आनलाइन आयोजन ज़ूम एप्प पर शंखनाद से प्रारंभ किया गया है, जिसमें विभिन्न देश के साधक-साधिकायें भाग लेकर इसे सफल बनाएं। संघ के बेतिया निवासी तथा एल एफ टी व्यंजना आनन्द 'मिथ्या' के द्वारा सफल संयोजन किया गया है,
जिसमें बेहतरीन संचालक कर व्यंजना आनन्द बेतिया, प्रखर कुमार बनरस, अजय भल्ला दिल्ली, नुपुर दीदी दिल्ली ने सबका मन मोह लिया ।
इस दौरान मुख्य अतिथि - आचार्य हरीशानंद अवधूत जी, आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत जी, आनन्द कल्याणमया आचार्या और लंदन के चांसलर प्रसन्नजीत कुमार रहें।
प्रतिभागी के रूप में सुंदर प्रस्तुति से मंत्र मुग्ध करने वाले साधक साधिकाएं- सानवी रूंगटा, जागृति श्रीवास्तव, रिषब देव बेतिया, तथागत टाटा नगर,वाणी श्रीवास्तव फरीदाबाद, वैदेही कौशल दिल्ली, डाॅ. कवि कुमार निर्मल, शिवानी जाधव सोलापुर, रत्नेश श्रीवास्तव फरीदाबाद, रंजित पडित, मोतिहारी, अंतिमा निर्मल, इन्द्राणी जाधव सोलापुर, सुजाता कुमारी, आसनसोल सुजाता भागलपुर, सुंदर कुमारी, पद्माक्षि शुक्ल 'अक्षि' पूणे,.रीता लोधा, चाकुलिया (झारखण्ड), आचार्य कृष्णानन्द आचार्य नैरोबी,अफ्रिका, पंकज दादा देहरादून, मीरा दीदी दिल्ली, गीता दीदी दिल्ली, कमला सिंह छत्तीसगढ, सुषमा शर्मा इंदौर, राखी दीदी दिल्ली, कौशल दादा, रंजित पंडित मोतिहारी, विजयालक्ष्मी पूणे, बिनू श्रीवास्तव साहेबगंज, विभा दीदी चौसा रहें। पाँचों कार्य के में आनन्द मार्ग के नारे लगाए गये।