दिव्यालय एक व्यकितत्व परिचय में हुआ साक्षात्कार: अध्यात्म में लीन आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया!
होस्ट- किशोर जैन
रिपोर्ट- सुनीता सिंह सरोवर
/// जगत दर्शन न्यूज
हम अपने रिलेशन जोड़ना चाहते हैं या तोड़ना चाहते हैं, यह हमारे हाथ में निर्भर है।
यदि हम अपनी ही बात करते चले जाएं और दूसरे की नहीं सुने, यानि हम तो मैसेज भेजते चले जाएं और आने वाले मैसेज को नहीं पढें, तो हमारे रिलेशन अच्छे कैसे हो सकेंगे? इसलिए व्हाट्सएप मैसेज भेजने वालों को चाहिए कि आने वाले मैसेज भी पढ़ें और उन पर अमल करें। ये आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया जी का कहना है।
प्रश्न- आप कहाँ से हैं?
उत्तर- मैं मध्यप्रदेश के उज्जैन में अवंतिका नगरी जो बहुत ही पावन और महाकाल की भूमि में, मेंरा जन्म हुआ एवं मेरी शिक्षा एवं उच्च शिक्षा मास्टर्स इन कामर्स यही के यूनिवर्सिटी से हुई, जिसमें मुझे रजत पदक प्राप्त हुआ।
प्रश्न-आप यूको बैंक में अभी भी हैं या वी आर. एस लिया?
उत्तर- जी मैंने 32 वर्ष बैंक में अपनी सेव प्रोविजन अफसर के रूप में दिया, उसके बाद बारह वर्ष तक बैंक के ट्रेनिंग डिपार्टमेंट में प्रिंसिपल के रूप में अपनी सेवाएँ दी। अब पूरी तरह से अध्यात्म में लीन हूँ, 2023 से मैंने अन्न का भी त्याग कर दिया है, केवल फलाहार लेता हूँ।
प्रश्न-मीरा हास्पिटल किसका है?
उत्तर- जी यह मेरी पत्नी के नाम से है। दिल खोलकर काम किया। जीवन को जिया, दीन - हीन और मानवता के लिए दिनरात एक कीकी हुई थीं। उनकेहर एक नेक कार्य और समर्पण को मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूँ। मेरे पत्नी को लेने स्वयं श्री कृष्ण आए थे। कर्म की गति न्यारी हो तो खुदा खुद अपने बंदे से रजा पूछता है।
प्रश्न- सुना है आप गायन सीख रहे हैं?
उत्तर- जी सही सुना है, हम जीवन पर्यंत विधार्थी ही रहते हैं, जब - तक तन मै प्राण है, इंसान कुछ न कुछ सीखता ही रहता है, और सीखने की कोई उम्र नहीं होती, तो बस मैं भी सीख ही रहा हूँ।
प्रश्न- अमर प्रेम की अमर कहानी के बारे में हमें बताएं।
उत्तर- जी, हाँ। यह एक फिल्म है, जो मैं अपनी पत्नी डाॅ मीरा पाटोदिया के जीवन, उनके निस्वार्थ सेवा और एक निश्छल, निस्वार्थ प्रेम जो एक पत्नी ने अपने पति से किया। मैं दुनिया को बताना चाहता हूँ, कि नर और नारायण में फर्क नहीं होता। जब हमारे दो हाथों में पत्नी का हाथ होता है, तो ठीक नारायण की तरह ही हमारे चार हाथ होतें हैं, जिसे अगर प्रेम और समर्पण के साथ निभाया जाए तो जीवन आसान, खुशहालीऔर उत्साह से परिपूर्ण हो जाता है।
प्रश्न- आज के युवा वर्ग को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर- मैं आज के युवकों और समाज से यही कहना चाहता हूँ, कि आप वर्तमान में जिएं, भूत - भविष्य को वाला कर जो पल आज आपका है जो खुशियाँ आज आपके दामन में है, आप उसका भरपूर आनंद ले, जीवन को खुल कर जीयें बस।
अंत में बेहतरीन संचालन कर रहे यू.के. से किशोर जैन ने अपने अतिथि को धन्यवाद दिया। इस नेक व सराहनीय कार्य के लिए दिव्यालय की संस्थापक व कार्यक्रम आयोजक व्यंजना आनंद 'मिथ्या' और पटल अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक मंजिरी "निधि" 'गुल'जी को कार्यक्रम आयोजन के लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Vyanjana Anand Kavya Dhara यूट्युब चैनल पर लाइव हर बुधवार शाम सात बजे हम देख सकते हैं। या उसकी रेकॉर्ड वीडियो को बाद में देखा जा सकता है।