"प्रेम" ही सत्यं-शिवं-सुंदरम्!
नागपुर (महाराष्ट्र): नागपुर महाराष्ट्र की अग्रणी संस्था हिंदी महिला समिती ने उक्त अत्यंत गूढ़ व रोचकता पूर्ण विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की, जिसकी अध्यक्षा रति चौबे ने की। वहीं संयोजकत्व में जो सफल रही रश्मि मिश्रा।
सर्वप्रथम रतिचौबे ने अपने विचार रखे कि-'प्रेम' ही सत्यम्-शिवं-सुंदरम "प्रेम" आदिकाल से है,पर सबकी सोच अलग-अगल है। अभिव्यक्तियां अलग है-कहीं वो पूजा है, कहीं वासना है। शिव-पार्वती के प्रेम ने जहांन शक्तिपिण्ड बनाएं तो वहीं राधाकृष्ण का प्रेम मिसाल बन अनंतकाल के लिए एक उदाहरण बना। राम-वैदही प्रेम आत्मसम्मान बना, गिरधर के प्रेम में मीरा बावरी हो गई। हीर-राझां का प्रेम मतवाला रहा। सोनी-महिवाल पे प्रेम का जुनून चढ़ा। सभी में प्रेम की तड़प, लगन, एक थी पर प्रेम विलक्षणताएं निराली थी और देखिये मूर्ख कालिदास ने मेघदूत की रचना करी तो शाहजहां ने ताजमहल बना डाला और फरहाद ने पहाड़ ही काट दिया। इसलिए कहती हूं प्रेम अनमोल है। उसे कभी तराजू में ना तोलना। उम्र की स्वांस में, नेह की डोर में प्रेम हो,ना स्वार्थ, हो बस लगाव हो क्यूंकि प्रेम ही तो सच में सत्यं-शिवं-सुंदरम है। भगवती पंत जी के शब्दों में ढाई अक्षर प्रेम कोय पढ़े सो पंडित होय प्रेम शाश्वत है। प्रेम कल्याणकारी है और प्रेम सुंदर है। इसी प्रेम के सागर में डूबकर मीरा बाई कृष्ण के प्रेम में दीवानी होकर विष का प्याला पी गयी और प्रेम ने विष को भी अमृत बना दिया। प्रेम के सुंदर स्वरूप पाकर शबरी के झूठे बेर भी राम को आनंदित कर गये। प्रेम के वशीभूत ब्रज की गोपियाँ अपनी सुध-बुध भुला बैठी थी। प्रेम हर व्यक्ति के हृदय में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। कहीं यह भक्त प्रह्लाद के हृदय में भक्ति के रूप में प्रस्फुटित होकर खंभे से नरसिंह भगवान को अवतरित कर देता है तो कहीं राधा का श्याम बनकर उभरता है । इसी प्रेम के लिये सती पार्वती ने शिव को पाने के लिये क्ई वर्षों तक कठोर साधना कर डाली। मांँ के हृदय में ममता के रूप में विकसित प्रेम की तो तब कोई सीमा ही नहीं रहती, जब वह अपने बालक के सुख के लिये बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना करने से भी नहीं हिचकती। माता पिता के प्रति श्रदृधा से भरे प्रेम में श्रवण कुमार की बराबरी भला कौन कर सकता है। अतः प्रेम सत्य है ,शिव है और सुंदर है।
उपाध्यक्षा रेखा पाण्डेय जी के विचार प्रेम ही सत्य है। प्रेम बहुत ही सुन्दर मन का आकर्षण है। प्रेम एक अहसास और एक अनुभुति है। कभी-कभी किसी की ओर आकर्षित होता है। प्रेम हमारे मन की एक भावना है। सच्चा प्रेम पवित्र होता है, सत्य होता है, सच्चा प्रेम वासना नहीं होता। उसका सबसे बड़ा उदाहरण राधा कृष्ण और मीरा कृष्ण का प्रेम यही होना चाहिए सच्चा प्रेम और कहते हैं कि सच्चा प्रेम दिल से ह्रदय से किया जाता है।
साहित्यकारा शीला भार्गव जी के विचार जो शाश्वत है वही सत्य है और शाश्वत सत्य परम कल्याणमयी है। परम कल्याणमयी तत्व ही परम सौंदर्य से परिपूर्ण रहता है यदि परम सौंदर्य को अनुभूत करना है तो वह पवित्र प्रेम से बढ़कर कुछ और नहीं हो सकता। यह ईश्वर का अनुपम उपहार है क्योंकि प्राणीमात्र के अंतस को इस तत्व से ईश्वर ने समृद्ध किया है। इसी के कारण से हम अपने मात-पिता, भाई-बहन, मित्र सखा से जुड़कर कर्तव्यों के निर्वहन में संतुष्टि प्रसन्न्ता और आनंद को अनुभूत करते हैं। प्रेम का विराट स्वरूप अनंत के रहस्य का अनावरण करने का सामर्थ्य रखता है। इसीलिए यह ईश्वर का परम प्रकाश है सांसारिक प्रेम की गहन अनुभूतियां इस परमोज्वल तत्व तक पहुंचने में सीढ़ी का कार्य कर सकती हैं। यह कहकर कि प्रेम ही सत्यम शिवं सुन्दरम् है।
मंजू पंत जी के सुविचारों में प्रेम ही सत्यम. शिवम.सुंदर है :--प्रेम के वशीभूत होकर ही कृष्ण ने अर्जुन का रथ हांकां था। मीरा ने कृष्ण प्रेम में डूब जहर पी लिया था। जग में सबसे सुंदर प्रेम ही तो है, क्योंकि उसमें कोई छल -कपट नहीं होता है। यही सत्य है और जब यह प्रेम पा लिया जाता है तो वही शिव (कल्याण) में परिवर्तित हो जाता है। इतिहास गवाह है। वेद -पुराणों में वर्णित है शिव - पार्वती /भक्त -भगवान / राम -सीता /राधा -कृष्ण / हीर -रांका आदि सब प्रेम - सत्य.शिवम.सुंदरम.हैं।
निवेदिता शाह जी के मतानुसार सत्यम, शिवम् सुंदरम किसी वस्तु या नीति को जांच की कसौटी में प्रस्तुत करने वाला वाक्य है, जिसका अर्थ है, सत्य कल्याणकारी, और सुंदर है। प्रेम एक एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। इसमें अनेक भावनाओं व अलग अलग विचारों का समावेश होता है। प्रेम स्नेह लेकर खुशी की ओर धीरे-धीरे अग्रसर करता है। जो सबके हित व कल्याणकारी भावनाओं को लेकर साथ चलने को प्रेरित करता है, जैसे माता -पिता जानवर, किसी इन्सान के प्रति स्नेह, समाज के प्रति कर्तव्य का बोध जब प्रेम की भावना निहित होगी तभी संभव हो पायेगा, निःस्वार्थ सेवा भाव प्रेम में परिवर्तित कब हो जाय। कहा नहीं जा सकता।वही प्रेम सत्यम शिवम् सुंदरम को परिभाषित करता है।
रेखा तिवारी जी ने कहा कि जो सत्य हैं, उसे ही शिव कहते हैं और शिव सुंदर से सुंदरतम हैं। ये भारतीय सभ्यता के अनुसार जन जन को कंठस्थ हैं। और प्रेम की बात करे तो राधा कृष्ण का प्रेम दिव्य अनुभूति की पराकाष्ठा से परे हैं। किसी का दिल न दुखे असत्य, विचारों की श्रेष्ठता जहाँ हैं आज के परिवेश में प्रेम को परिभाषित करे तो सत्यं शिवम सुंदरम हैं। कहा भी गया हैं:
निर्मल मन जन सो, मोहि पावा।
मोहि कपट, छल छिद्र न भावा।।
कविता कौशिक जी के अनुसार सत्य पर टिका प्रेम कभी नही टूटता है । पावन प्रेम कृष्ण और राधा का इस प्रेम की हम जितनी सुंदर अभिव्यक्ति की जाये कम है।मीरा प्रेम एक भक्ती की अनुभूति करवाता है। सोनी महिवाल और हीर रांझा इनके प्रेम की एक अलग व्यथा और कथा जग जाहिर है। इनका प्रेम जुनून और जिद्द और एक दूसरे को किसी भी हाल में प्राप्त करने की गाथा बतलाता है। इसी तरह हम बात करें तो गोरा कुम्हार का प्रेम पावन है। साथ ही हम बात करें पुडंलिक की तो इनका प्रेम माता पिता की भक्ति की एक अलग अभिव्यक्ति करता है। जिन्होंने हमारे भगवान को ईट पर खड़े रहने के लिए बाध्य किया यें भी जग जाहिर कथा है। यह प्रेम भी सत्यम शिवम सुंदरम कहला सकता है।
गीतू शर्मा जी कहती हैं कि प्रेम रिश्तों का "ऑक्सीजन" होता है जो रिश्तों को जीवंत बनाए रखता है। प्रेम के बिना "इंसान बिना पूंछ के पशु समान है। "केवल "प्रेम" ही वो भाव है जिस से किसी को भी वश में किया जा सकता है। किसी को भी अपना बनाया जा सकता है। प्रेम सिर्फ़ "एहसासों का भाव" है तभी तो प्रेम की भाषा तो पशु भी समझते है। जैसे "शिव" सत्य और सुंदर है, वैसे ही प्रेम का स्वरूप भी सदैव "सत्य" की तरह शाश्वत, नश्वर और सुंदर ही रहा है और रहेगा। जैसे शिव अजन्मे और अकाल है। प्रेम भी अकाट्य, अद्भुत है। धर्म, जात पात, उम्र, समय, ऊंच नीच से परे है। सिया राम हो, शिव शक्ति हो या राधा कृष्ण विभिन्न मायनों में इन्होंने प्रेम की सार्थकता सिद्ध की है। कुछ रहे ना रहे, प्रेम तो हमेशा रहेगा। क्योंकि "प्रेम सत्य है, शिव है, सुंदर है।"
संतोष बुद्धिराजा के अनुसार "जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु" विक्टर ह्यूगो। प्रेम के प्रीत के ढाई आखर सही, ज़िंदगी में भला और क्या चाहिए।
प्रेम एक एहसास है, जिसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता। "अनिर्वचनीय प्रेम स्वरूपम्" प्रेम खशबू की तरह है, जिसने महसूस कर लिया, उसका जीवन महकने लगता है। प्रेम दिल से होता है, दिमाग से नहीं, इसलिए प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है। सच्चा प्रेम अनमोल होता है। किस्मत वाले ही इसके हकदार होते हैं। सच्चा प्रेम उत्कृष्ट होता है, पवित्र होता है जिसमें वासना नहीं होती, प्रेम की पराकाष्ठा होती है। |राधा- कृष्ण का प्रेम, मीरा- कृष्ण का प्रेम सर्वोत्कृष्ट प्रेम था। हीर-रांझा, सोहनी- महिवाल, ससि-पुन्नू का प्रेम भी उत्कृष्ट प्रेम था, लेकिन आज वासना और शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम समझ लिया गया है जो सर्वथा गलत है।
कविता परिहार जी के अनुसार सत्यम शिवम सत्यम का अर्थ है, ईश्वर शिवम् का अर्थ है, आत्मा सुंदरम का अर्थ है। प्राकृतिक सौंदर्य हमारे अच्छे कर्मों के फल से ही हमारे सदगति का मार्ग प्रशस्त होता है। शिव, निरंकार, निर्गुण है, ये अमूर्त सत्य है, और शंकर भगवान ने भी घोर तपस्या कर शिव शक्ति पाई हैं। सुंदरम हमारी प्राकृतिक सुंदरता में भी आठ तत्वों का समावेश है जिसमें हवा, पानी, सूर्य चंद्रमा, प्रकृति, वगैरह-वगैरह शामिल है जो हमारे वातावरण को सुंदरम बनाते हैं।
अलका शाह जी के शब्दों में प्रेम तो रिश्तों को एक डोर में बाँध कर रखता है, प्रेम के बीना इंसान पूर्णता शून्य है। जब ब्यक्ति को प्रेम नहीं मिलता है, तो वह डिप्रेशन का मरीज़ हो जाता है। प्रेम ही वह धन है जो घर परिवार दोस्त समुदाय हर किसी को इसकी ज़रूरत है। जानवर भी प्रेम के भाव व भाषा को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश मन बुद्धी और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व है।
अपराजिता राजोरिया जी के अनुसार शिव प्रेम का विराट स्वरूप है जैसे रस के बिना फल बेस्वाद होते है,खुशबू के बिना फूल बेकार होते है।इसी तरह बिना प्यार बिना सुन्दरता के सब कुछ शून्य के समान है इसी लिऐ कहा गया है की सत्यम शिवम सुन्दर अथाॅत जहां सत्य है वहां शिव के साथ ही सुन्दरता व्याप्त है।
सुषमा अग्रवाल जी के अनुसार प्रेम ही सत्यं शिवम् सुंदरम प्रेम अंतर्मन से किसी के लिए एकदम से उपजा ऐसा भाव है जो उसके प्रति आदर समर्पण व श्रद्धा से सब कुछ न्यौछावर करने को कहे। बस अंतर्रात्मा से किसी के लिए निकले ये उद्गार ही "प्रेम" है। जब अंतरात्मा से कुछ निकलता है तो वो "सत्य" ही होता है। उसमें मिलावट या खोट की कोई गुंजाइश नहीं होती।
सरोज गर्ग की स्वरचित पंक्तियों में प्रेम सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् है। प्रेम शाश्वत है प्रेम की परिभाषा अकथनीय है। प्रेम मीरा ने किया जो शाश्वत था प्रेम राधा ने किया जो अवासनिक था ।अवध में राम, काशी में शिव और कान्हा वृन्दावन में सब एक हैं एक ही ईश्वर का रूप हैं जो सत्यम्, शिवम् ,सुन्दरम् कहलाता है। इसी को ईश्वर भी कहते हैं। हमको भी हर दुखी इन्सान में यही देखना होगा तभी सबका उद्धार भी होगा और। हमारे भारत की संस्कृति वापस आयेगी।
अंत में रश्मि मिश्रा के शब्दों में हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते होहि प्रगट मैं जाना।
अर्थात जहाँ प्रेम होता है भगवान स्वयं व्याप्त होते हैं। शबरी एक भीलनी होकर भी भगवान के प्रेम मे डूबी हुई थी और उनके प्रेम में इतनी सत्यता थी कि भगवान को जूठे बेर खिला रही हैं इस बात का उन्हें अहसास तक नहीं हुआ। सतरूपा का प्रेम तो भगवान को पुत्र बनने पर विवश कर दिया यही सत्य है और सत्य स्वयं शिव है। शिव वही है जो भगवान के बाल रूप को देखने को आतुर धरती पर आ गये। यह भी तो प्रेम की पराकाष्ठा को प्रस्तुत करता है। जहाँ भगवान एक दूसरे के दर्शनों को व्याकुल हैं और दर्शन हुए तो एक-दूसरे में ऐसे खोए कि सुध-बुध ही न रही और उस क्षण का सौन्दर्य तो अवर्णनीय है। उपर्युक्त कार्यक्रम में कविता परिहार जी ने सबका सहृदय आभार व्यक्त किया।