हिंदी के रूह में अब,
बसते हिंग्लिश नेह!
/// जगत दर्शन न्यूज
दोहे
हिंदी पे विश्वास कर,करते जाओ काम।
अंग्रेज़ी के मोड़ पर,रटते जाओ नाम।।
क्यों पढ़ते इतिहास में,अंग्रेज़ो के राज़।
ए हिन्दुस्तानी फतह,ख़ुद पर कर लो नाज़।।
टेसू छोड़ा खेलकर,पकड़ा तुमने हार।
होने वाला पतन है,ये है अत्याचार।।
अभिभावक ही मन गढ़े,ये अंग्रेज़ सपूत।
अड़चन में अपनी धरा,कैसा ये करतूत।।
हिंदी के रूह में अब,बसते हिंग्लिश - नेह।
होकर बोलूं मैं विवश,कब था हिंदी देह।।
बोली का भी दिवस है,करता हूं अनुरोध।
संस्कृति का गौरव विफल,कब होगा अब बोध।।
संस्कृत अब खंडन तरफ़,टूटी-फूटी और।
शुभ संध्या बोलूं नहीं,अंग्रेज़ी पर गौर।।
हिंदी बोली पाप तो,मत अंग्रेज़ी झाड़।
अंग्रेज़ी भी श्राप है,चल पन्ना तू फाड़।।
अँगना में ना अंगना,बिन तुलसी का शहर।
इतना ही कारण रहें,बस संकट का कहर।।
वाणी मनमोहक लगे,जिसमें गाली ख़ूब।
कटता जो बूढ़ा-शजर,पृथ्वी में सब डूब।।
कलयुग में यदि धन नहीं, फ़िर कोई ना आप।
जिस बोली में धन मिले,वो बस माई- बाप।।
नभ में उड़ती पंक्तियां,शब्द कुचलता धार।
समझोगी मेरी कला,कैसा वाक् सुधार।।
ममता से हिन्दी जगा,सुर में बुनता काव्य।
माटी पर हिंदी रहे,खादी पहने भाग्य ।।
राही सत्संगी मिले,सुधरे फ़िर तकदीर।
कोई कठिनाई नहीं,सब टूटे जंजीर।।
तुम सीखो सत्संग में,हिंदी है सम्मान।
होगे तुम भी वीर अब,जीतोगे अनुमान।।
बजता है ये शंख जब,योद्धाओं का मान।
सारंगी भी प्रबल हो,बढ़ जाता है शान।।
हिंदी का गुणगान ये,सुन्दर है व्यवहार।
महिमा इसकी है अलख,केवल ना त्यौहार।।
कब तक कोसोगे नियति,कर करके अपमान।
मुझको सुरक्षा दो वतन,बोली ही सम्मान।।
दीवाना है जो मिरा,वो करता है जतन।
विचलित होगा जो कभी,वो करता है पतन।
मैं व्यंजन कितनी मधुर,मिलकर शोर मचाय ।
स्वर मेरा इतना सजा,मंगल रूप सुहाय।।
मैकाले की अदब,पर चलते हो ग़ज़ब।
माध्यम अंग्रेज़ी सनक,क्या लगते हो अजब।।
गरिमा शब्दों का नहीं,विषयों का भरमार।
दिग्गज़ सारे स्कूल में,कुचलें बस घर बार।।
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