कहानी : प्रेम की बेला
✍️ राजीव कुमार झा
प्रेम की बेला
राकेश अपनी जिंदगी में सारी चीजों को यथावत देखता रहना चाहता है और उसके भीतर - बाहर जो कुछ भी घटित होता रहता है आखिरकार यह उसे जिंदगी का सबसे बड़ा किस्सा प्रतीत होता है और समाज में सारे लोग उसे सबसे पहले खुद का सामना जिस तरह से करते दिखाई देते हैं उसे वह जिंदगी का सबसे बड़ा जादू मानता है। नलिनी को इसीलिए आकाश में सूरज का निकलना और रात में चांद का चमकना सितारों का टिमटिमाना यह सब जितना सुन्दर लगता है, वह इन सब बातों को रोज उतना ही सहज भी मानती रही है। आंधी तूफान बारिश मेघ बादल बिजली और धूप पानी के खेल में मौसमों की आवाजाही को निहारना उसके जीवन का सबसे प्रिय विषय है। राकेश को नलिनी के जीवन की यह सब सारी बातें बेहद अच्छी लगती हैं और उसे वह किसी कवयित्री के समान अक्सर शांत और तल्लीन दिखाई देती है। इसके बारे में नलिनी को हंसकर एक बार कुछ कहा भी था तो वह खुशी से झूम उठी थी और प्रत्युत्तर में उसने भी राकेश को कहा था कि तुम मुझे आकाश में छाये बादल के समान लगते हो।
बारिश से मन को भिगो देते हो और किसी कविता के अनगिनत भावों से जीवन को सुख के सुंदर रंगों से सराबोर कर देते हो। कितना अच्छा लगता है मुझे तुम्हारा आना और यह सब कहना। राकेश को नलिनी इस प्रेम की इस वेला में नीलिमा के समान लगने लगती है और उसकी खुबसूरती को निहारता हुआ शांतचित्त बाहर निकल जाता है। दिनभर अपने काम में संलग्न रहता है। नलिनी उसे प्यार करती है और शायद बहुत जल्द वह उससे विवाह के अटूट बंधन में भी बंध जाना चाहती है। नलिनी की इन इच्छाओं से राकेश भली-भांति अवगत है और वह पिछले दो - तीन सालों से उसे प्यार करता आ रहा है और यह उसके लिए सबसे बड़ी बात है कि वह नलिनी के साथ ऐसे रिश्तों में बंधा है और लेकिन उसकी इच्छा के अनुरूप अपने इस प्रेम को विवाह का रूप देने की जल्दबाजी से वह सबको सदा दूर बना दिखाई देता रहा है और इसमें किसी का भी यहां तक की नलिनी के मन की बातों की भी उसे कोई परवाह नहीं है। नलिनी के घर परिवार के लोग इस वजह से राकेश से कोई मतलब नहीं रखते हैं लेकिन राकेश की सदाशयता को लेकर उनके मन में कोई संशय कभी नहीं रहा और इसलिए नलिनी का मन भी उसके प्रति प्रेम और समर्पण से परिपूर्ण बना रहा । वह राकेश को अपना सर्वस्व मानती है और इन दोनों प्राणियों का जीवन इस शहर में सबको एकमेक बना दिखाई देता है। नलिनी ने राकेश को कभी अकेला नहीं देखा और उसे सदैव ऐसा लगता कि वह उसके साथ काफी खुश रहता है और उसे देखकर सबके चेहरे पर एक सुकून फैल जाता है मानो वह सबसे खैरियत पूछ रहा हो और उसे देखकर हर कोई आश्वस्त हो जाता हो । राकेश के व्यक्तित्व के इस बड़प्पन ने नलिनी के जीवन को एक तरह से इस कदर अभिभूत कर दिया है कि वह इसके अलावा कभी कुछ भी नहीं सोच पाई और उसके घर परिवार के लोगों ने भी इसके बारे में कुछ सोचना या कहना जरूरी नहीं समझा। बरसात के मौसम में राकेश नलिनी को साथ लेकर शहर की झील के किनारे चला जाता है और यहां दोपहर में एक बार उसने इन्द्रधनुष को आकाश में उगा हुआ देखा था। तब उसे लगता था कि सावन में आकाश और धरती के पावन परिणय के आनंद में यह इन्द्रधनुष संसार के सारे लोगों के मन की रंगत को समेटे हुए है। उस दिन तभी उसे सुषमा की याद आयी थी जो अविवाहित अवस्था में बेटी को जन्म देने के बाद देश को छोड़कर बाहर चली गई थी और फिर वहां उसने किसी एनआरआई से विवाह रचा लिया था और यहां भारत में अपने प्रेमी को खबर भिजवाया था कि वह उसे अब भूल जाए और उससे पुराने प्रेम को पाने की कोई उम्मीद अब आगे नहीं करे । राकेश ने भी इस घटना का जिक्र नलिनी से कभी किया था और काफी देर तक हंसता रहा था। नलिनी को राकेश की यह हंसी और उसके पहले फैली उसकी चुप्पी बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। कभी - कभी अपने घर परिवार के लोगों के चेहरे को देखकर भी उसका मन घबराता है और उसे लगता है मानो वह राकेश के साथ निरंतर चलती हुई भी कहीं ठहर गयी हो और राकेश उसे कह रहा हो दुनिया में जब तक सारी चीजें नहीं बदलती हैं तब तक हम किसी भी बात को लेकर बहुत ज्यादा सोचते रहते हैं और नलिनी को उसने कहा था कि तुम अब बेहद परेशान हो जाती हो लेकिन सारे लोग हमें बेहद निकट से जानते हैं। यहां शहर का एक तबका ऐसा है जिनसे आने वाले लोग अपने बारे में किसी को कुछ बताना ज्यादा पसंद नहीं करते और जिंदगी की कई बातों को लेकर उन्हें रस्साकसी का खेल
नापसंद रहता है और इसमें दांव-पेंच की बातें भी उन्हें नागवार गुजरती हैं। नलिनी इन सब सारी बातों से राकेश के साथ खुद को अलग पाती रही है और अब घर परिवार दफ्तर के अलावा उसकी कोई जिंदगी नहीं है। राकेश ने उस दिन इसलिए उसे कहा था कि तुम इसलिए आज की जिंदगी की इन बातों को बिलकुल भी नहीं समझ पाती हो...