पुण्य स्मरण!नामवर सिंह का साहित्यिक अवदान!
हिंदी के युगपुरुष के रूप में आज नामवर सिंह के जन्मदिन का आयोजन सारे देश में हो रहा है और यह सबसे खुशी की बात है। नामवर सिंह के बारे में यह कहा जाता है कि वह पहले कवि थे और बाद में बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ाई - लिखाई के बाद आलोचना लेखन की ओर उनका झुकाव कायम हुआ और उन्होंने साहित्य चिंतन के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की सारे लोगों ने भी उनको स्वीकार किया। वह वामपंथी रुझान वाले चिंतक थे और देश की आजादी के बाद जब साहित्य में भी जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह वैचारिक विमर्शों में संकीर्णता और निरर्थक प्रवृतियों का समावेश हुआ तो उस वक्त उन्होंने साहित्य और संस्कृति को पतन की प्रवृत्तियों से उबारने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।
उन्हें महान लेखक और विचारक हजारी प्रसाद द्विवेदी का शिष्य माना जाता है और उनकी चिंतन परंपरा को विस्तार देने वाले आलोचक के रूप में नामवर सिंह का नाम प्रगतिशील लेखक के रूप में सदा स्मरणीय रहेगा । नामवर सिंह को मैंने कई बार दिल्ली में रहने के देखा और सुना। मेरी पढ़ाई - लिखाई यहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया में संपन्न हुई और इसकी साहित्यिक संगोष्ठियों में वह अक्सर शिरकत करते दिखाई देते थे और उस समय जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग का माहौल आज की तुलना में बिल्कुल भिन्न था और यहां अब्दुल बिस्मिल्लाह और असगर वजाहत प्रभृत नामचीन साहित्य सेवी प्राध्यापन में तब जुटे थे और इन लोगों के मार्फत जामिया मिल्लिया इस्लामिया में होने वाले उनके कार्यक्रमों की जानकारी मुझे मिल जाती थी और मैं उनका भाषण सुनाने जाता था। नामवर सिंह से एक बार किसी वीडियो प्रोग्राम के लिए उनके इंटरव्यू के बारे में मैंने बातचीत भी की थी और वह उन दिनों भारत भवन के आयोजनों में व्यस्त थे। काफी साल पहले उनके देहावसान के बारे में मुझे किसी गुमटी पर भास्कर अखबार को पढ़ते हुए पता चला। दिल्ली से आने के बाद यहां पिछले दस सालों से मैं अखबार और आज के दूसरे मीडिया से काफी अलग थलग रहता हूं, लेकिन साहित्य से मेरा लगाव आज भी कायम है और इसमें नामवर सिंह से प्राप्त प्रेरणा को सबसे सर्वोपरि स्थान देना चाहूंगा।