मणिपुर की शर्मनाक घटना पर एक परिचर्चा!
नारी उठा लो "तलवार"बन जाओ तुम "चंडिका"
आयोजक: हिंदी महिला समिती
/// जगत दर्शन न्यूज
नागपुर (महाराष्ट्र): मणिपुर की जवलंत मुद्दे पर हिंदी महिला समिती के द्वारा आयोजित परिचर्चा का प्रस्तुत है कुछ अंश!
रति चौबे:
मणिपुर में मैतई और कुकी दो जातीय विवादों ने इतना भयंकर रुप लिया जो बेहद शर्मनाक है।उसका बनी निशाना एक "स्त्री" जब बलात्कार से मन नहीं भरा तो उसे नग्नावस्था में घुमाया गया। आकाश रोया और धरा शर्मसार हो गई, पर उन नौनिहालों की आत्मा नही कांपी। यह जघन्य, क्रूर घिनौना अपराध करते हर समस्या का शिकार नारी ही क्यों?? महाभारत एक दुष्ट "दुर्योधन" के कारण हुआ, पर जौ षडाष्टक बैठे देख रहे थे। वो क्या दुर्योधन की श्रेणी में नही आते। करने वाले से अधिक देखने वाले अपराधी होते हैं। मणिपुर में क्या सभी नपुसंक थे, जो रोक ना सके यह हादसा? जातीयता और वर्चस्व की लालसा ने इसको बर्बरता का रुप दिया। इस दुष्कर्म से एक नारी नहीं पूरा "भारत" नंगा हुआ है। अब समय आ गया है ऐसे पिशाचों को खत्म करने के लिए। नारी को शस्त्र उठाकर चण्डिका बनना ही होगा। एक कृष्ण ने तौ द्रौपदी को बचा लिया था, पर आज यहां गली गली में दुर्योधन झुंड बनाकर घूम रहे। कैसे बचे द्रौपदी? जब कृष्ण नहीं धरा पर। हैं मुत्यु- दंड ही उनको सही है।
डॉ कविता परिहार:
मणिपुर की घिनौनी हरकत... वो वह भी 10-20 पंक्तियों में नामुमकिन है, असंभव है। इस विषय पर लिखने मात्र से कुछ नहीं होगा। इसके खिलाफ सभी महिलाएं संस्थाओं को पुरजोर एकता के साथ ठोस कदम उठाना चाहिए।
अगर हमारा प्रशासन या यूं कह लीजिए, कि मोदी जी या अमित शाह जी ने इस विषय को गंभीरता से लिया होता तो शायद यह मुद्दा अभी तक समाप्त हो गया होता, इसमें दो राय नहीं।
बंगाल में क्या, गुजरात में क्या, महाराष्ट्र में क्या ? किस- किस की बात करें ,यह सब देख सुनकर रूह कांप- कांप जाती हैं। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की बात, व्यर्थ लगने लगे।
रश्मि मिश्रा:
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।"
अर्थात - "जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती, उनका सम्मान नही होता। वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। कभी कभी तो लगता है कि ये बातें सच भी हैं या नहीं। क्योंकि आजकल अखबार, मीडिया वाले भी अपना TRP बढ़ाने के लिए बकवास बातें लिखने लगे हैं। घटना की असलियत क्या है किसी को नहीं पता।
बात बहुत बुरी है, असहनीय है किन्तु हमें सब सहन करना पड़ता है। आजकल बच्चे भी कहाँ माँ-बाप की बात सुनते हैं खास कर लड़कियाँ??
जब बच्चों को ढंग के कपड़े पहनने के लिए बोलो तो वे माँ-बाप की पुरानी मानसिकता कहकर दरकिनार कर देते हैं या फिर घर से कुछ और पहनकर जायेंगी फिर बाहर जाकर पहनावा बदल लेती हैं। ऐसे में किसको दोषी ठहरायेंगे?"
धारणा अवस्थी:
मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी जनजाति की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब (ST) का दर्जा दिया जाए। इस समस्या का समाधान क्या केवल दंगा, फसाद, बलात्कार से हो सकता है? क्या बदले की भावना इतनी प्रबल है कि किसी भी स्त्री को नग्न घुमा कर उसके साथ बलात्कार किया जाए। मणिपुर में किसी एक संप्रदाय के द्वारा इस तरीके की किए जाने वाली घटना बहुत शर्मनाक है मन को झकझोर देने वाली घटना बहुत दुखदाई है। क्या कोई और तरीका नहीं है! अपनी बात को सरकार के सामने रखने का?हमारे देश ने शांति, सुरक्षा और विकास को लेकर बहुत सारे कानूनी सुधार किए हैं। दोनों समाजों को कानूनी तरीके से अपनी समस्या रखनी चाहियॆ और समाधान प्राप्त करना चाहियॆ। इस तरीके से हिंसा, दुराचार और वैमनस्य का सहारा बिलकुल गलत है।
अलका:
अत्यन्त ह्रदय विदारक घटना। जघन्य कृत्य अपराध समझ नहीं आ रहा इनको क्या कर दें। कुछ कर भी नहीं सकते केवल मन मसोस के रहना पड़ता है। इनको तो तुरंत खत्म कर देना चाहिए न रहे बांस न बजेगी बांसुरी। सत्ता में बैठे लोगों की लापरवाही ही बार बार ये सब कराती हैं। एक बार सही निर्णय ही इनको रास्ता दिखा सकता है।
गीतू शर्मा:
मणिपुर की घटना अखबारों में पढ़ी थी जो इतनी विस्तार में नही थी, लेकिन जब सोशल मीडिया के जरिए सच्चाई का पता चला की पूरे देश और संसद तक को झकझोर देने वाला मुद्दा आखिर है क्या तो मन आक्रोश और गुस्से से भर गया।
क्या मानवता, संवेदना, एहसास कुछ भी नही होता ऐसे लोगों में जो ऐसी घटनाओं को अंजाम देते है। विकृत और गंदी मानसिकता वाले लोग ही ऐसा कर सकते है।
ऐसी कोई घटना हो जाती है उसके बाद देशभर में उसका विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी शुरू हो जाती है, पर असल में जो किया जाना चाहिए वो ये की ऐसे लोगो को तुरंत फांसी पर टांग देना चाहिए या सरेआम गोली मार देनी चाहिए, ताकि ऐसी मानसिकतावाले अन्य किसी को सबक मिल जाए।
तरस के साथ रोना आता है उन पीड़िताओं के बारे में सोचकर की क्या गलती थी उनकी जो ये सब उन्हें झेलना पड़ा बस यही की उनकी जाति छोटी है, ये कोई उनका गुनाह तो नही की जिसकी इतनी बड़ी सजा उन्हें मिली।
ममता विश्वकर्मा:
वो वह भी 10/ 20 पंक्तियों में नामुमकिन है, असंभव है, इस विषय पर लिखने मात्र से कुछ नहीं होगा इसके खिलाफ सभी महिलाएं संस्थाओं को पुरजोर एकता के साथ ठोस कदम उठाना चाहिए।
अगर हमारा प्रशासन या यूं कह लीजिए कि मोदी जी इस विषय को गंभीरता से लेते तो शायद यह मुद्दा अभी तक समाप्त हो गया होता
बंगाल में क्या, गुजरात में क्या किस किस की बात करें ,यह सब देख सुनकर रूह कांप- कांप जाती हैं।