पत्रकारों को खबर का कवरेज करने से रोकना संज्ञेय अपराध!
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देश प्रदेश में घटने वाली घटनाओं का कवरेज करने से पत्रकारों को रोकना अथवा उसमें बाधक बनना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो तीन मामलों में अपनी टिप्पणी से न्याय जगत को अवगत करा दिया है। बावजूद इसके अक्सर ऐसा देखा जा रहा है कि चंद स्वार्थी तत्व अथवा छुटभैये नेता आए दिन खासकर घटना दुर्घटना के मामलों में मौका ए वारदात पर पहुँचे पत्रकारों को खबरों का कवरेज करने में बाधक बनकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का असफल प्रयास करते हैं।
कहा गया है, 'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचें कवि'। महज सैकड़ों अथवा हजारों का प्रतिनिधत्व करने वाले नेता अक्सर पत्रकारिता के कार्य में बाधा उतपन्न करके खूब तालियां बटोरते हैं। वैसे लोग यह भूल जाते हैं कि कभी कभी सिर्फ एक खबर पर ही बड़ी बड़ी सरकारें गिर जाती हैं। उदाहरण के तौर पर जासूसी अथवा फोन टेपिंग के मामले को लेकर छपी सिर्फ एक खबर पर चंद्रशेखर सरकार का महज चार महीने में ही पतन हो गया था। ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं। वास्तव में पत्रकारिता करने वाला इंसान कभी किसी का विरोधी नही करता है। घटना की पटकथा में शामिल किरदार खुद फायदे अथवा नुकसान का आकलन करके खुश अथवा नाराज होते रहते हैं। पत्रकार तो हर हाल में तटस्थ ही होता है। चाहकर भी पत्रकार एक पक्षीय नही हो सकता। चूंकि उसे दोनों पक्षों की गतिविधियों से रूबरू होना पड़ता है। यही पत्रकारिता का मूल मंत्र भी है।
सारण जिले के माँझी प्रखंड के मुबारकपुर में पांच माह के भीतर घटी दो आपराधिक घटनाओं का कवरेज करने गए पत्रकारों को कई नए अनुभवों के दौड़ से गुजरना पड़ा। वाहवाही के साथ साथ पत्रकारों को आलोचनाओं का भी सामना पड़ा। कल्पना करें कि दोनों घटनाओं से पत्रकारों को अलग कर दिया जाय तो फिर आपके पास कहने सुनने को बचता ही क्या। वैसे अनेक राज दफन हो जाते, जिनसे सामाजिकता की डोर बंधी है। पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने की जिम्मेवारी बेशक प्रशासन की है, बावजूद इसके दोनों पक्षों में शामिल निर्दोष लोगों को पत्रकारिता के बगैर वास्तविक न्याय नही मिल सकता।
लाखों करोड़ों पाठकों, दर्शकों व श्रोताओं को लक्जरी कार से घटना स्थल पहुँचे नेताओं के बयानों से पेट नही भरता, बल्कि तंग हाली से जूझते साधन विहीन परन्तु सूचना की दुनिया के ईमानदार पत्रकारिता के किरदारों की कलम तथा जुबान पर भरोसा हुआ करता है। पत्रकार तो आईना होता है साहब। आईना में झांकने वालों को उनका वास्तविक सूरत ही दिखाना उसका धर्म है। आईने को न तोड़ें। टूटे आईने में तो बेदाग चेहरे पर भी दागदार लकीरें दिख जाएंगी।