एक प्रश्न!: किरण बरेली
/// जगत दर्शन न्यूज़
भोर सुहानी कहाँ भटक गयी?
अब अँधियारी रात आई?
बिखरे सपने लुटे लुटे हैं,
कैसे नव सृजन आरंभ करु?
कुछ नया रचु अब बुनु नया,
उतार मन की बोझिल थकन,
कदम कदम नव उमंग लिए,
पंखों में उड़ान फिर कैसे भरु?
टूटा है मन का राजमहल,
ना किया शिकायत वक्त से,
फिसला हाथों से थोडा बच पाया,
अतीत से फरियाद कैसे करु?
है जटिल जीवन यात्रा बड़ी लम्बी,
जाने कब कहाँ पर शाम ढले,
मन मेरे तू चला चल अकेला,
एकाकी पथ,
किस राही का आस करू?