शब्दों से बया नही कर सकतें मां का प्रेम!
पहली धड़कन भी मेरी धडकी थी तेरे भीतर ही,
आंचल को तेरी छोड़ कर बता फिर मैं जाऊं कहां!
आंखें खुली जब पहली बार तेरा चेहरा ही दिखा,
जिंदगी का हर पल जीना तुझसे ही सीखा।
खामोश मेरी लब को आवाज़ भी तूने ही दिया,
स्वेत पड़ी मेरी अभिलाषाओं को रंगों से तुमने भर दिया!
अपना निवाला छोड़कर मेरी खातिर तुमने भंडार भरे,
मैं भले नाकामयाब रही फिर भी मेरे होने का तुमने अहंकार भरा।
वह रात छिपकर जब तू अकेले में रोया करती थी,
दर्द होता था मुझे भी, सिसकियां मैंने भी सुनी थी.
ना समझ थी मैं इतनी खुद का भी मुझे इतना ध्यान नहीं था,
तू ही बस वो एक थी, जिसको मेरी भूख प्यार का पता था।
पहले जब मैं बेतहाशा धूल में खेला करती थी,
तुमने ही मुझे पोंछ कर अपना आंचल धूल से भरा,
जब मैं ख़ुद "मैं" की पहचान करने निकली,
तब तुमने ही मुझसे मेरी पहचान कराई।
शब्दों में बयां नहीं कर सकती मां का प्रेम,
तुम तो निः शब्द हो मां,
वो जो ईश्वर ने खुद के रूप में भेजा,
तुम वो उपहार हो मां।
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रचना:
प्रिया पाण्डेय "रोशनी"
हुगली, पश्चिम बंगाल
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