मातृ दिवस पर विशेष रचना!
माँ!!!
जिसके लिए
कोई माह तारीख़ दिवस नहीं,
ये जीवन माँ का स्वरूप है।
जीवन के गुजरते पल-पल का,
मखमली नर्म अहसास है!
इसे कभी भी,
महसूस किया जा सकता है।
लफ्ज!
लफ्ज कम से लगते हैं,
तुझे लिखने को।
कहाँ से ले आऊँ,
वो बेशकीमती मोती से अक्षर,
जिसमें तेरी गरिमा गाऊं!
माँ तू बस माँ है,
तुझमें अनंत है।
माँ
जीवन के सफर में अक्सर,
मिल जाया करते हैं,
तपती रेत के नगर
बिन सावन ही सावन की बरसात,
माँ तुम करा सकती हो।
बचपन के दिनों का मीठा चुम्बन,
नायाब लाजवाब तोहफ़ा खजाने में, महफूज रखा है।
उसका अहसास,
माँ तुम अब तक करा देती हो।।
थकन से परेशान,
जिंदगी की उलझनों से,
उलझ जब जिद्दी मन मचल जाए तो,
मीठी लोरी झोली में रख,
बिन बुलाए,
माँ तुम चली आती हो।
दर्द भी दिखलाए तो तुझे,
कुछ अपने सफर में अकेला छोड़ दिए।
कुछ बेवजह रूठ गए।
कितनी दूर जाकर भी पल-पल,
दिल के आसपास,
माँ तुम ही रहा करती हो।।।।
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