----राधेश्यामी छंद ----
व्यंजना आनंद 'मिथ्या'
----राधेश्यामी छंद ----
योग ही सही दिशा
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जब श्वास नियंत्रित हो तेरा,
आसन अभ्यास करो खुलकर।
बांयी नाशा जब चलती हो,
तब चक्रों में मन को तुम धर।।
सात्विक भोज्य जरूरी होता,
मन को ऊपर है ले जाता।
सुन सोच तमो गुण का तन में,
सच भोग गलत करके आता।।
दस वायु नियंत्रित होती है,
तन स्वस्थ्य दिशा को पाता है।
यह होता ध्यान मिलन से ही,
प्रभु से बन जाता नाता है।।
बढ़ना है उस ओर तुम्हें तो,
सत राहों को जीवन में गुन।
कहते योगी सबको ऐसा,
उनकी बातों को दिल से सुन।।
अब योग लहर बहती चहुँ है,
जागे है सारे नर नारी।
जानो खुलकर सब नियमों को,
कर लो इसकी तुम तैयारी।।
यह प्राचीन समय भी कहते,
मन को ऊपर है ले जाओ।
करना योग सदा ही तुम तो,
तब रोग बिना जीवन पाओ।।
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