जन केहू के घर फोरीं.....
रचना: बिजेन्द्र कुमार तिवारी
तूरे का चक्कर में देखीं,
खुद ही गइले टूट।
दोसरा के लुटे में अबकी,
अपने गइले लूट।।
सब दिन त्राह मचावे अबकी,
अपने भईल तबाह।
हाथी बने का चक्कर में,
अपने भइले ऊंट।।
जे दोसरा के तूरी भैया,
उ खुद ही टूट जाई।
लूटी जे दोसरा के इज्जत,
ओकर खुदे लुटाई।।
बड़ूवे इ एकता खंडित,
जे फोरे के चाही।
आपन धरम गवांई अउरी,
उ खुद ही फूट जाई।।
बस नेकी के राह चलीं,
अउरी समाज की जोड़ीं।
बिगड़ल एह हालात के भइया,
सही दिशा में मोड़ीं।।
उहे करीं उपाय जवन,
भाई-भाई के जोड़े।
उहे करीं उपाय जवन कि,
सही दिशा में मोड़े।।
आपन करीं बिकास कबो ना,
कइल नेकी बोरीं।
निज स्वारथ के फेरा में,
जन केहू के घर फोरीं।।
कहस बिजेंदर परहित में जे,
आपन समय लगाइ।
मानव धर्म अपनाइ अउरी,
सबसे नेह बढ़ाइ।।
ओकरा जस के झंडा सुन ली,
फइली चारू ओरी।
निजी स्वार्थ के फेरा में जन,
केहू के घर फोरीं।।
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