माँ हूँ मैं! : किरण बरेली (उत्तरप्रदेश)
💐 काव्य जगत 💐
माँ हूँ मैं, जीवन रचती हूँ।
शीतल नदी से, तुझे सींचती हूँ।
अपनी उंगलियों की पोर पोर से,
मीठा रस टपकाती हूँ।
अपने अधरों पर तेरी प्यास रख,
मिठास शरबत की भर देती हूँ।
माँ के हाथों की सूखी रोटी को,
जिसे छप्पन भोग बताती हूँ।
गढ़ती रही नौ माह गर्भ में,
अनमोल तुम्हें समझती हूँ,
पावन रामायण जैसी सब माता,
गीता का उपदेश सुनाती हूँ।
*************************