चित्राभिव्यक्ति गीत
मात्रा भार-16/16
नवल सृजन की गाथा अनुपम!
रचना:
प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
थाम तूलिका पतझर लिखता,
नवल सृजन की गाथा अनुपम।
देख देख मधुरिम उपवन को
पीर देह की हो जाती कम।।
आशाओं के फूल खिले हैं,
जैसे मन की इस क्यारी में ।
मधुर गंध आती है हर क्षण
उर की सुंदर फुलवारी में।।
अब बहार की खुशियाँ छाईं,
साथी नयन नहीं करना नम।
देख- देख मधुरिम उपवन को,
पीर देह की हो जाती कम।।
कली- कली पर घूमे भँवरा,
चूम रहा कोमल आनन को।
गोरी बुला रही है अब तो,
अपने परदेसी साजन को।।
बिछड़े प्रेमी सभी मिले हैं,
आओ ना मिलें आज तुम-हम।
देख -देख मधुरिम मौसम को
पीर देह की हो जाती कम।।
विटप सजे हैं नव पातों से,
मखमल जैसी लगती कोपल।
भाँति-भाँति के सुमन खिले हैं,
लगते ये सरस सुभग कोमल।।
पवन बसंती चली झूमती,
गूँज रही है मानो सरगम।
देख देख मधुरिम मौसम को,
पीर देह की हो जाती कम।।
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