कवितालोक साहित्यांगन में चित्र आधारित सृजन में तीन श्रेष्ठ रचनाकार को दिव्यालय किया सम्मानित!
चित्र चिंतन 1-3-23
लावणी छंद 16/14 (गीत)
होली का त्योहार निराला!
रचना
प्रियंका त्रिपाठी 'पांडेय'
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
सखी सहेलियाॅ॑ खेल रहीं हैं,
प्रेम रंग की होली रे,
नीले पीले लाल गुलाबी,
रंग लगाती भोली रे।।
होली का त्योहार निराला,
खेले हर मतवाली रे,
रंग अबीर गुलाल मले सब,
झूमे है हर आली रे।
बरसाने की होली भाई,
आई देखो टोली रे,
सखी सहेलियाॅ॑ खेल रहीं हैं,
प्रेम रंग की होली रे।।
भर पिचकारी सबने मारी,
गीत फाग के गाएं रे,
प्यारा है त्योहार हमारा,
सबके मन को भाए रे।
भिन्न-भिन्न हैं लोग यहाॅ॑ पर,
भिन्न-भिन्न है बोली रे,
सखी सहेलियाॅ॑ खेल रहीं हैं,
प्रेम रंग की होली रे।।
हरी भरी फसलें लहराएं,
कोयल कूके डाली रे।
आम और महुआ बौराए,
पाके गेहूं बाली रे।
शर्म हया के गहने पहने,
पहने घाघर चोली रे।
सखी सहेलियाॅ॑ खेल रहीं हैं,
प्रेम रंग की होली रे।।
सखी सहेलियाॅ॑ खेल रहीं हैं,
प्रेम रंग की होली रे,
नीले पीले लाल गुलाबी,
रंग लगाती भोली रे।।
आओ मिल कर प्रेम परोसे!
रचना
अभिज्ञान शाकुन्तलम्
आओ मिल कर प्रेम परोसे,
इन होली के रंगों में।
सारी दुनिया सिमट गई है,
रंगों संग उमंगों में।।
कितना प्यारा लगता तन पर,
मन से सारे द्वेष मिटे।
रंगों से भर दे जीवन में,
भाव अनैतिक शेष मिटे।।
देता है संदेश सभी को,
क्या रक्खा है दंगों में।
सारी दुनिया सिमट गई है,
रंगों संग उमंगों में।।
आयें जो यदि मन में दूरी,
रंगों से सब दूर करें,
प्रेम भाव से इस जीवन को,
मिल कर अनुपम नूर करें,
रंग कहें पथ धर्म न छोड़ें,
अड़चन और अड़ंगों में,
सारी दुनिया सिमट गई है,
रंगों संग उमंगों में।।
लाल हरा नीला पीला हो,
जैसे खेला करते थे,
टोरी बन कर घर घर घूमें,
जीवन मैला करते थे,
लौट चलें हम सब फिर से उस,
बचपन वाले पंगों में,
सारी दुनिया सिमट गई है,
रंगों संग उमंगों में।।