'गर्ल्स प्राउटिष्ट' सिंम्पोजियम का हुआ सफल आयोजन!
बेतिया (बिहार): प्रउत (प्रगतिशील उपयोगी तत्त्व) एक सामाजिक -अर्थनैतिक सिद्धान्त है जिसका प्रतिपादन वर्त्तमान काल के युग द्रष्टा तथा महान दार्शनिक श्री प्रभात रंजन सरकार ने 1955 इ. में किया था। यह सिद्धान्त सम्पूर्ण मानव जाति को एक इकाई के रूप में मानता है तथा यह जाति-पाति, रंग-नस्ल-भेद, सम्प्रदाय -मजहब-भेद, ऊॅंच-नीच, अमीरी-गरीबी की भावना से परे मानव मात्र को ईश्वर की सन्तान मानता है, जिसके पिता परम पुरुष और माता परमा प्रकृति हैं। इस लिहाज से दुनिया की सारी सम्पत्ति परम पुरुष की है। इस नाते सबों को इसका उपभोग करने का समान अधिकार है इसलिए प्रउत सिद्धान्त कहता है कि दुनिया के सभी संसाधनों का अधिकतम उपयोग होना चाहिए तथा विवेकपूर्ण तरीके से सबों के बीच उनका वितरण होना चाहिए। इस सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार करने तथा इसे अमलीजामा पहनाने के लिए 'प्राउटिष्ट यूनिवर्सल' संस्था का गठन किया गया जो दुनिया भर में कार्य कर रही है। इसका महिला शाखा 'गर्ल्स प्राउटिष्ट' के नाम से जानी जाती है जो प्राउटिष्ट आदर्शों के अनुरूप समाज में अनेक समस्याओं को झेलती हुई नारी को जागरुक करने तथा अपने आप को बदलते हुए परिस्थितियों में सामाजिक, आर्थिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से सशक्त करने के लिये पूरे दुनिया में कार्य कर रही है।
दिनांक 26 फरवरी को बालिकाओं तथा नारियों के प्रगतिशील भविष्य को ध्यान में रखते हुए 'गर्ल्स प्राउटिष्ट' के तत्त्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसका विषय था- 'समाज निर्माण में नारी की अहम् भूमिका'। कार्यक्रम का मुख्य आतिथ्य बेतिया शहर के वार्ड-13 के निवर्त्तमान पार्षद श्रीमती रिंकू देवी जी ने स्वीकारा वहीं मौके पर उपस्थित आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत, आनन्द कल्याणमया आचार्या, अवधूतिका आनन्द देशना आचार्या, अवधूतिका आनन्द प्रभा आचार्या, अवधूतिका आनन्द प्राप्ति आचार्या, अवधूतिका आनन्द सुब्रता आचार्या, राजू रौनियार, सुनीता सिंह सरोवर, अंतिमा निर्मल, पुष्पा निर्मल डाॅ. कवि कुमार निर्मल, एडवोकेट नागेंद्र सिंह सरोवर तथा शिव प्रकाश साहित्य की गौरवमयी उपस्थिति में तथा व्यञ्जना के सञ्चालन तथा संयोजन में ये दोनों कार्यक्रम बेतिया में इतिहास रचने में सफल रहा। इस कार्यक्रम के दौरान बेतिया नगर की चार बेटियाँ पूर्णिमा, विनीता, प्राची तथा सुन्दरम वर्दी सहित प्रमुख वोलण्टियर के रूप में दिखीं।