शिव रात्रि पर विशेष
'प्रेम' ही सत्यम् शिव सुदंरम् है....
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रचना: रति चौबे (नागपुर, महाराष्ट्र)
पुलकित आज..
धरा अबंर है
उषा नहाई नहाई सी..
पगों में प्रेमियों के मदृंग..
दिलों में धड़कने है संगीत
मन कुछ बहका बहका सा है..
धरा गगन. उन्मादित है
मदमदाता ये मौसम है
खिलखिलाते 'प्रेमीयुगल',है
लम्हों को पकड़ने की चाह
दिल से दिल मिलने की उमंग
उल्लसित हो रहे है तन मन
' शिवरात्री' और 'वेलन्टाईन'
एक अदभुत् प्रेम संयोग
पर अभिव्यक्तियाँ अलग..
हर. युग में रहे प्रेमी युगल.
' प्रेम. वही है सोच अलग
कहीं प्रेम 'पूजा' कहीं 'वासना'
'शिव पार्वती' प्रेम ' शक्तिपिण्ड' बने
कृष्ण राधा का प्रेम बना 'मिसाल
राम वैदेही प्रेम हुआ ' आत्म सम्मान
गिरधर. के प्रेम. में मीरा भयी 'बावरी'
हीर रांझा का प्रेम बना 'मतवाला'
सोनी महिवाल. पे चढा़ 'जूनुन...
.तड़प सभी में लगन हर एक में
प्रेम में विलक्षणतायें निराली..
रचा दिया इतिहास...
कालिदास. ने रच दिया 'मेघदूत'
शाहजहाँ ने बना दिया ' ताजमहल'
फरहाद. ने काट दिया 'पहाड़'
प्रेम को 'प्रेम'. ही रहने दो
प्रेम हो 'पूजा'ना.हो 'वासना'
प्रेम काे रखो 'अनमोल'..
ना बने कभी'तराजू'
उम्र. की सांसे, नेह की 'डोर'प्रेम
ना.कोई 'स्वार्थ' बस 'लगाव'
क्योंकि प्रेम ही..
सत्यम्......शिव् ...सुदंरम्
रचना
रति चौबे (नागपुर, महाराष्ट्र)