धरम ना होला रोटी के, नाहीं पानी के जात।
एहमें नाहीं भेद लगाईं, मानीं हमरो बात।।
रोटी सबके भूख मिटावे, पानी सबके प्यास।
एह दूनों से नेह लगाईं, मानीं हमरो बात।।
नेह धरम से रिस्ता जोड़ीं, मिहनत के अपनाईं।
रोटी पानी दूनूँ सरथा भक्ति से उपजाईं।।
छिनीं ना रोटी केहू के, पानीं करीं ना गंदा।
नीच कर्म हऽ बाबू एह से, सेहत होला मंदा।।
रोटी पर ना नजर गड़ावऽ, रोजी कबो ना छिनऽ।
इ सब गंदा काम ह बाबू, कर्महीन के चिन्हऽ।
रोटी हऽ रोजगार ए भइया, पानी जीवन धार।
खूब जोगा के राखऽ एहके, कहे बिजेन्द्र विचार।।
-------------------------------