कवि गोरख पाण्डेय
पुण्यतिथि (29/1/1989) के अवसर पर सादर नमन और श्रद्धांजलि!
विशेष लेख
गोरख पाण्डेय : कविता में देश की आम जनता के जीवन का चितेरा कवि!
लेखक: राजीव कुमार झा
हमारे देश में कविता लेखन की परंपरा समाज और जीवन से जुड़े मुद्दों को लेकर बेहद उदात्त भावों और विचारों को प्रतिपादन करती है और एक ऐसे दौर में जब कविता ज्यादातर मनुष्य के जीवन के दैनंदिन प्रसंगों को
समेटकर अपने प्रतिपाद्य में दार्शनिक स्तर पर गहन चिंतन मनन से नितांत दूर प्रतीत हो रही हो तो समकालीन हिंदी कविता में गोरख पाण्डेय की कविताओं का विवेचन जरूरी हो जाता है।
गोरख पाण्डेय की कविताओं में समाज, संस्कृति, राजनीति और मौजूदा व्यवस्था के तानेबाने को लेकर व्यापक संवाद का भाव इसमें विद्यमान है और आलोचक उन्हें मूलतः परिवर्तनकामी चेतना का कवि मानते हैं। यह भी कहा जाता है कि गोरख पाण्डेय आंदोलनकारी थे ओर उन्होंने बनारस में अपनी पढ़ाई के दौरान नक्सलबाड़ी आंदोलन में भी भाग लिया था।
गोरख पाण्डेय के जीवन का अंतिम काल दिल्ली में व्यतीत हुआ और यहां जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 29 फरवरी 1989 को काफी असहज और असामान्य परिस्थितियों में उनका देहांत हो गया।
गोरख पाण्डेय देवरिया के रहने वाले थे और बाल्यावस्था से ही उनके मन में समाज के गरीब दलित उपेक्षित तबकों के लोगों के जीवन के प्रति सहानुभूति का भाव कायम रहा था। उनकी कविताओं में मानवीय बोध का धरातल काफी सजीव और विस्तृत है। अपनी कविताओं में वह अक्सर समाज में व्याप्त नाना
प्रकार की विसंगतियों और असमानताओं को लेकर प्रश्नाकुलता से घिरे दिखाई देते हैं।सचमुच वह इंकलाब के कवि हैं। देश में सामान्य जनता के जीवन से जुड़े सवालों को लेकर कविता लिखने वाले कवियों में वह सबसे विलक्षण कवि माने जाते हैं। आज उनकी पावन पुण्यतिथि है और इस अवसर पर उनको सादर श्रद्धांजलि!