स्वास्थ्य केंद्र की बड़ी लापरवाही, खुले में फेंकी गई दवाइयां, महामारी की आशंका
मशरक (बिहार) संवाददाता धर्मेन्द्र सिंह की रिपोर्ट: छपरा जिले के मशरक प्रखंड स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जब खुद अस्वस्थ्य है तो वह दूसरों को क्या स्वस्थ्य कर पाएगा। इसका भवन तो जर्जर अवस्था मे है ही, शायद इसके कर्मचारी भी जर्जर हो चुके है।
बात सोमवार की है जब साइकिल से विद्यालय जा रहे दो नाबालिक बच्चों ने देखा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के पीछे गढ़े में बहुत सारी दवाइयां , गढ़े में फेंकी जा रही है, जी हाँ! दवाइयां। जो दुख हरती है। जो मरते का जान बचाती है। इन दवाओं में टैबलेट, कैप्सूल, आदि शामिल है। वे दो बच्चे देखते ही रह जाते है। फिर वे जब नजर हमारी पड़ती है तब माजरा समझ मे आती है। अगर फेंकी गई दवाइयां एक्सपायर होती है तो अस्पताल प्रशासन की बड़ी लापरवाही तो सामने दिख रही थी। जितनी मात्रा में दवाई फेंकी गई है, उसका आकलन लाखों रुपये लगाई जा सकती है। अभी दो दिन पहले डिलेवरी के लिए एक महिला आई थी अस्पताल में। उसके परिजनों ने दवाई बाहर से खरीदने के आदेश दिए जाने का आरोप लगाया था। वहीं कोरोना काल में भी लोगों को दवा के लिए मशरक में भटकना पर रहा था। ये जो दवाईयां फेंकी गई है इसमें किसकी लापरवाही है? क्या अस्पताल के डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन की नही है? अस्पताल में दवाई और डॉक्टर की कमी के कारण रोगियों का समुचित इलाज इस अस्पताल में नही हो पाता है। आखिर क्यों? क्या सिर्फ मरहम पट्टी की औपचारिकता पूरा करने के लिए अस्पताल है यह? सरकार दवा करती है कि राज्य के हर स्वास्थ्य केन्द्र में दवाएं उपलब्ध है। अस्पताल में सरकारी दवाओं की सूची भी टंगी हुई मिल जाती है। फिर भी यहां आने वाले हर मरीज को दवा बाहर से खरीदना पड़ता है। क्या यह सिर्फ दिखावे के लिए नही है? फेंकी गई दवाईयों में मुख्य रूप से गर्भ निरोधक गोलियां, मरहम, हाइड्रोक्लोराइड, पैरासिटामोल, सोडियम क्लोराइड आदि दवाएं फेंकी गई है। इस से होने वाले संदूषण के फलस्वरूप महामारी की आशंका जायज है। अब मरीजो का इलाज किस तरह का होता होगा! इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। आखिर ये बच्चे आश्चर्यचकित क्यों न हो।