!!दस्तूर !!
अजय सिंह अजनवी
जमाने में एक दस्तूर थी,
ओरतें पर्दा नसीन थी,
बिना मिलें बिना देखें,
निकाह हुआ करता था।
अब मिलने जुलने की,
रिवाज बन गई,
ओरतें भी बेशर्म हो गई,
अब वें बेपर्दा होने लगी,
सर से चुनरी सरकने लगी,
लोक लाज सब भूल गई।
बेपर्दा होना फैशन हो गई,
जिस्म नुमाइश आमहो गई,
दोष अब किस किस को दें,
उसको या इस समाज को ।
एक शायर ने एक बार कहा,
एक रुपया से वह धन होगा,
नँगा चलना फैशन होगा फिर,
टोकने वाला ही दुश्मन होगा।
रचना
अजय सिंह अजनवी
छपरा