◆ तुम्हारी मीठी सी आवाज़ ◆
कुछ कहानियाँ
अधूरी ही लिखी जाती हैं,
मुझे तो तुम्हारी मीठी सी आवाज़ पसंद हैं,
एक बार मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ
समझाया था उसने
और कहा था ----
जानती हो,
ये जो नज़्म लिखता हूँ न
ये वही अधूरी कहानियों का हिस्सा है
जिन्हें शब्दों में पिरोकर
मैं उन बिछड़े लोगों तक पहुंचाता हूँ
ज़माने की बंदिशों में बंधकर
कभी अगर हम न मिल पाए तो तुम पढ़ना
प्रेम में लिखी गई नज़्में,
और अपने दिल के धड़कन से सुनना,
मेरे दिल की आवाज़
और उसकी इन बातों को में हँसी में उड़ा दिया करती फिर उसी पल उसके हाथों को चूम कर कहती ...
जिन नज़्मों में
तुम्हारी उँगलियों की महक नहीं
वह मुझको अपनी सी
कहाँ महसूस होगी?
थोड़ा करीब बिठाकर जब तुम कहते हो न
आज तो तुम्हें लिखने को जी चाहता है
शब्दों की चाशनी में डूबी हुई
मीठी सी हर्फ़ हो तुम
डरता हूँ कहीं डायरी के पन्नों में
चींटियाँ न लग जाये
हवा में तैरती हुई वही नज़्में मुझको
अपनी सी लगती है
और देर तक गूँजती हँसी उन सीढ़ियों पर इस बात से अंजान कि मंदिर में मृदंग और बजती हुई घण्टियों के आवाज़ के साथ लिख रहा है विधाता एक नई विरह की कहानी
जिससे फिर लिखी जाए
पीड़ा संजोए हुए अनगिनत नज़्में
और कहीं जीवित रहे सदियों तक
पुनः मिलन की आस !!
★★★★★★★★★★★★
प्रिया पाण्डेय "रोशनी"
संपादिका
जगत दर्शन साहित्य