फिर भी न आई : अखिलेश्वर कुमार
तेरे इश्क में हम यूँ बहे
कि तू दरिया तक ना मिले
लोग हमें कहे विक्षिप्त तक
ना हुए इश्क में विचलित तेरे फिर भी,
तेरी मधुर मधुरिमा की खातिर।
मेरे अंतः करण से यह नाद आ रहा,
रूह-ए-खाश बने तू मेरा,
यह सपना सजा रहा
पूर्ण होगी कल्पना कोरी,
अतः जीवन बचा रहा।
अब हो रहा आभास मुझे
प्राण उड़ेंगे खातिर तेरे,
फिर भी एक उम्मीद जगा रहा,
एक मिलन की आस में
तेरे इश्क में हम यूँ बहे,
अब तू आई अब तू आई।
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