अंगुठी में नगीना : प्रिया पांडेय 'रौशनी'
बहुत दिनों से बीमार चल रही शांता जी ने आवाज लगाई- बहू मेरी दवाईयों की शीशी जरा देना...। .......जी मां जी! आजकल तुम कहां बिजी रहती हो.....? मेरे कपड़े अभी तक प्रेस नहीं हुआ....। अब क्या पहन कर जाऊंगा आंफिस के लिए? मैं आई बाबा...। इतने में बेटा रोहित ने आवाज लगाई। .. मम्मी! मेरे लंचबॉक्स और वाटर बोतल ...... मैं कैसे स्कूल.. ?
जल्दी-जल्दी प्रिया सारे काम निपटा कर आंफिस चली गयी। प्रतिदिन प्रिया की तो यही दिनचर्या....।
एक दिन बहुत परेशान हो पति ने पत्नी से कहा- डार्लिग!तुम! दिन से रात इतने काम करती हो.। अपने लिए तो समय ही नहीं...? "क्यों न हम मां को वृद्धाश्रम छोड़ आएं"? काम का बोझ भी कम हो जाएगा! प्रिया प्रकाश को अपलक आंखों से देखती रही। फिर बोली"-मैं मां जी को क्यों? मैं ये नौकरी छोड़ दूंगी..? बगल के कमरे से मां जी ने सब सुन लिया। वो दिल से बहू को दुआएं भी दे रही थी। बेटे को बुलाकर कहा- बेटा मेरी बहू तो अंगुठी में नगीना है । मैं ऐसी देवी रूप में बहू को पाकर तो धन्य हो गई।
◆ प्रिया पांडेय रौशनी
हुगली प बंगाल