बिहार की युवा कवियत्री नेहा कुमारी अपने आप मे प्रगतिशील साहित्य की द्योतक रही है। वे अपने काव्य रचना से विश्व के हर कण को ऊर्जावान बनाती रही है। इनकी काव्य लेखन अपने आप मे अद्भुत प्रेरणा समेटती है। प्रस्तुत है एक व्यक्ति को हमेशा अपनी सफलता के प्रति लक्ष्यमान रहने की सीख देती यह रचना।
रुको नहीं तुम बढ़े चलो : नेहा कुमारी
रोज गिरो तुम रोज उठो,
पर रुको नहीं तुम बढ़े चलो।
जीवन की यह पथ दुर्गम है,
पथरीले है निर्मम है।
दुख की आंधी की दब करके
विचलित नहीं हो जाना तुम।
चलते-चलते माना एक दिन,
तन मन छलनी हो जाएगा।
दुनिया के कटु प्रहार झेल,
ह्रदय बहुत घबरायेगा।
तब घोर निराशा के दलदल में
डूब कहीं मत जाना तुम।
मौन साधना दृढ़ प्रतिज्ञा,
नेत्र सदा लक्ष्य की ओर,
विजय तुम्हारी ही निश्चित हैं,
विश्वास यहीं दोहराना तुम।
रोज गिरो तुम रोज उठो,
पर रुको नहीं तुम बढ़े चलो।
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